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Guggal Protection and Promotion
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Programmes of Sujagriti Samaj Sevi Sansthan

गूगल का हो संरक्षण तब होगा बीहड के गरीबों का रक्षण।

आज 26 फरवरी 2024 को हमारे गूगल प्लांटेशन में गूगल के पेड़ों का अवलोकन करने हेतु माननीय रामगोपाल सोनी साहब पूर्व सदस्य सचिव जैव विविधता बोर्ड ,पधारे उन्होंने गूगल के पौधों का अवलोकन किया तथा गूगल से कैसे गौद निकलता है और यह जाना इसके संरक्षण और संवर्धन हेतु क्या और किया जा सकता है इस पर चर्चा हुई गूगल के लिए सबसे पहले सपोर्ट हमें बायोडायवर्सिटी बोर्ड भोपाल से सोनी साहब द्वारा ही प्रदान किया गया था। उन्होंने कहा गूगल की संरक्षण से बीहड़ के गरीबों का भाला होगा यह वहुत पुनीत कार्य है क्योंकि इससे गरीबों की आजीविका चलती है तथा विदेश से अशुद्ध गौद की जगह स्थानीय प्रजाति से निकला हुआ गौद औषधि कंपनियों और वैद्यौ के लिए बड़ा हितकर होगा।उन्हें मेरे द्वारा सलाई गौद और गूगल गौद भी भेट किया गया। तथा उन्हें बताया गया कि प्लांटेशन अभी भी अनवरत चल रहा है। इस समय डाबर कंपनी के सहयोग से प्लांटेशन हम लोग कर रहे हैं। पहले की तुलना में अब गौद बहुत ज्यादा मात्रा में होने लगा है।जिससे हमारे गरीबों का जीवन स्तर सुधार है।धन्यवाद

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आखिर किसान क्यो जलाता है नरबई ?

इन दिनों दिल्ली महानगर में एक घातक समस्या प्रदूषण की बनी हुई है।लोग उसे पंजाब हरियाणा के फसल अवशेष जलाने से जोड़ते हैं। 3 वर्ष पहले की बात है तब मैं (जैव विविधता प्लानिग कोर कमेटी भोपाल) की उक्त बैठक में शामिल था। उस बैठक में तमाम जैव विविधता के मुद्दों के साथ किसानों के मुद्दे पर भी चर्चा हुई थी।इस कमेटी में वन,पशुपालन, मछली पालन, कृषि, एवं उद्यानकी आदि तमाम बिभाग के अधिकारी थे। तथा विश्व विद्यालय के कुलपति से लेकर मेंरे जैसा मात्र अनुभव जनित ज्ञान को आधार बनाकर तर्क रखने वाला साधारण किसान भी।

यूं भी जैव विविधता के संरक्षण य विनष्ट करने के जिम्मेदार यही बिभाग माने जाते हैं। जबलपुर कृषि विश्व विद्यालय के एक डीन थे जिनने नरवई जलाने को जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता विनष्ट के लिए भारी घातक बताया था।परन्तु प्रश्न उठता है कि आखिर किसान उसे क्यो जलाता है ? मुझे याद है कि साठ के दशक तक किसान के लिए भूसे पियार का बहुत बड़ा महत्व हुआ करता था। उसके खेत में खुद के खाने के लिए अनाज न हो तो वह सन्तोष कर लेता था। पर जानवरों को यदि भूसा चारा न हो तो विचलित हो जाता था।

कारण यह कि वर्षा आधारित खेती के उस जमाने में अकाल से निपटने के लिए एहतियात के तौर पर उसके अनाज की कोठियौ में 80 वर्ष तक खराब न होने वाला कोदो, बाजार सुरक्षित रहता था पर पशुओं के लिए भूसा चारा कहा मिलेगा? यह चिंता हमेशा उसके दिलोदिमाग में बनी रहती थी। पशु उस समय परिवार के ही अंग थे इसलिए तिनके -तिनके का महत्व था।

1989 का अकाल मुझे याद है जब हम ने जेठ माह में पीपल, धौ धबडामें चढ़ उसकी पत्तियां काट और खिलाकर किसी तरह अपने गाय बैलों को जीवित रखा था। क्योकि भूसा चारा कुछ नही था। उन दिनों बगैर बैल के खेती की तो कल्पना ही नही की जा सकती थी। जब बैल का महत्व था तो उसकी जननी गाय का भी आदर था।

परन्तु इधर जब बैल का स्थान टैक्टर ने ले लिया और गाँव में एक टैक्टर भी आया तो अब वह 20 बैलों के लिए बूचड़ खाने का रास्ता प्रसस्त कर देता है। फिर उसके साथ उसकी माँ का भी ग्रह निकाला हो जाता है। जब जुताई से हारबेष्टिग तक का काम यन्त्र ने ले लिए हों तो अब ऐसी स्थिति में कौन अल्प बुद्धि किसान होगा जो नरवई कटाने में ब्यर्थ मजदूर ढूढ़ता फिरेगा ? जब कि सरकारी आंकड़ा है कि गेहूं धान उत्पादन में 1000 रुपये प्रति क्विंटल यूं ही किसान का ब्यय आता है। व 10 एकड़ के औसत 100 क्विंटल उत्पादन में 1 लाख रुपये खर्च कर साल भर में वह मात्र 50 हजार ही कमा पाता है। जब कि एक चपरासी इतनी राशि 2 माह में अपने बेतन में कमा लेता है।

ऐसी स्थिति में वह प्रति एकड़ और दो चार हजार अनावश्यक खर्च करने के बजाय पचास पैसे की मांचिस खरीद कर उसे आग के हवाले करना ही उचित समझता है। नरबई जलाना निश्चय ही घातक है। उससे छोटे बड़े सभी जीव मर जाते हैं। बेचारे कितने ही पेड़ पौधे झुलस कर सूख जाते हैं। पर हर साल मंहगाई के नाम अपना बेतन बढ़बा लेने बाले तथा फिर भी सस्ता अनाज और सस्ती सब्जियों को खाने वाले भी तो उस किसान के सम्मान जनक लाभ पर कुछ बिचार करें ? जो परिवार समेत लगे रहने के बाद भी उचित मजदूरी भी नही पा रहा।

अगर समन्वय बना कर लोग उसके आमदनी पर भी बिचार करें तो वह तो उपभोक्ताओं को रसायन रहित सब्जी और अनाज भी दे सकता है। परन्तु झूर शंख बजने वाला नही है। क्योकि उसके भी मुँह पेट है। परिवार है और प्रतिष्ठा रक्षक अनिवार्यता भी। बस यही अर्थ शास्त्र है जो उससे यह गलत काम करबा रहा है जिसमें उसके खेत तो खूब हरे भरे दिखते हैं परन्तु मिलता कुछ नही।


गूगल का पौधा गरीबों की आजीविका के लिए वरदान है

दिनांक 7, 12, 2023 को पटवारी प्रशिक्षण केंद्र के पीछे पिपरई में सुजागृति समाजसेवी संस्था मुरैना द्वारा डावर कंपनी के सहयोग से किया गया जिसमें ग्रामीण हितग्राही किसान और वन विभाग से सीसीएफ माननीय टी एस सुलिया साहब व वन स्टाफ मीडिया के लोग एवं यदुनाथ सिंह तोमर समाजसेवी लोग स्कूल के टीचर व बच्चों ने और कला पथक दल के कलाकारों द्वारा भागीदारी की इसके रोपण का उद्देश्य यह है गूगल का उत्पादन बढ़ाना, विलुप्त होती प्रजाति को बचाना, बीहड़ कटव रोकना और पर्यावरण लाभ हेतु यह कार्यक्रम संपादित किया गया कार्यक्रम में सर्वप्रथम गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें गुगत पौधा रोपण के उद्देश्य संस्था अध्यक्ष जाकिर हुसैन द्वारा बताए गए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदरणीय टी एस सुलिया साहब द्वारा बताया गया के लघुवन उपाय में सबसे महंगी गूगल लघुवन उपज है। यहां बीहड़ के कारण उपजाऊ जमीन खराब हुई है किंतु ऊपर वाले ने यहां सबसे महंगा पौधा गूगल दिया है। जिससे लोगों की आजीविका चलती है इसका संरक्षण एवं संवर्धन इन गरीबों की आजीविका हेतु एवं औषधीय के लिए आवश्यक है कला पदक दल के द्वारा गीत प्रस्तुत किए गए जिसने हमें दिया ही दिया उन्हें मिटाये क्यों गूगल जंगल में मंगल जो करते उन्हें मिटाए क्यों प्रस्तुत किया गया तद उपरांत सभी के द्वारा एक-एक पौधा गूगल का रोपण किया गया। पिपरई गांव के मालिक राम द्वारा सीसीएफ साहब को गूगल के बीज चमेनी के बीज एवं करल टाटी भी भेंट की गई ।यह कार्यक्रम सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक चलेगा ।


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तकनीक से हुई बड़ी तकलीफ।

मानव ने जैसे-जैसे नई तकनीक अपनाई वैसे वैसे वह तकलीफों में फसता नजर आ रहा है। जैसे व्यवस्थित कृषि व्यवस्था मानव ने जब से शुरू की तो वाह गेहूं चना बाजरा धान आदि फसलें करता रहा और इन फसलों के लिए तकनीक के रूप में फर्टिलाइजर्स, प्रेस्टीसाइज और हाइब्रिड अपनाने लगा जिसका दुष्परिणाम यह हुआ के हमारी खेती की जमीन धीरे-धीरे मृत हो गई। इसका उदाहरण पंजाब है वहां जमीन मृत् हुई तो लोगों ने उसे छोड़कर दूसरी जगह खेती करना शुरू कर दिया और इन केमिकल तथा फर्टिलाइज से वहां खेती करने लगा, इस से जो फसलें पैदा हुई उनसे तमाम बीमारियां मनुष्य को होने लगी। साथ ही इंजनों मशीनों की खोजें की इन खोजा से लोगों ने खेतों में बोरवेल लगाए, 100, 200 किसानों की खेतों से जो बरसात का पानी जमीन में रिचार्ज हुआ वह बोर बैलों से खींच लिया गया एक किसान को लाभ हुआ 200 का वाटर लेवल नीचे चला गया। एक बदमाश हुआ और फकीर हो गए। अंधाधुंध पानी जमीन से खींच लिया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे कमी आए रही ताल तलाइयां सूखी, जल स्तर काम भयों भूमि को नदियां दिख रही सूखी। और तमाम काश्तकार परेशान हो रहे हैं। ट्रैक्टर व अन्य मशीनों की वजह से हमारे बैल बेकार हो गए तथा जो मजबूर वर्ग था वह भी बेकार हो गया सेटल्ड कृषि व्यवस्था से हमारी विविधता ही खत्म होगयी जिससे हमें जो पौष्टिक भोजन मिलता था वह भी नहीं मिल पा रहा है पहले लोग वनस्पति के विषय में जानते थे के कौन सी वनस्पति के फल पत्तियां फूल कंद मूल हमारे खाने के लिए उपयुक्त है और वह खाते थे। उससे वह निरोगी और ताकतवर रहता था। आज लोग हमारे आरंणय, पर्वत, घटी, वन,मैदान,नदियां और झरनौ से दूर होता जा रहा है। उनकी उन्हें पहचान नहीं है। खेती की मिट्टी को मृत करके, जमीन के वॉटर लेवल को खात्मा करके और जंगलों को नष्ट करके हम तकनीक से तकलीफ की ओर बढ़ते जा रहे हैं‌। अंततोगत्वा मानव जीवन समाप्ति की ओर अग्रसर हो रहा है।मनुष्य के क्रमिक विकास और उसकी उपलब्धियों को देखा जाय तो चार ही ऐसी क्रांतियां हैं जिनमें मनुष्य समुदाय का अमूल चूल परिवर्तन हुआ है। वह हैं--

1-- आग की खोज
2-- पहिए और इंजन खोज,
3-- लौह अयस्क और केमिकल खोज,
4-- वर्तमान कम्प्यूटर य डिजिटल क्रान्ति।इस पर विचार करने की आवश्यकता है। जाकिर हुसैन

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प्रकृति श्रृंगार महोत्सव -२०२३

#Regenerative farming , carbon sequestration

(Creating Natural food forest for foraging )

Chief Guest

Shri Mishra, IPS ,DIG, Banda Range

PHOENIX FARM , Pachnehi

(On 16th July 2023, 0900 hrs)


प्रकृति श्रृंगार महोत्सव -२०२३

#Regenerative farming , carbon sequestration

(Creating Natural food forest for foraging )

Chief Guest : Shri Narendra Singh , VC, BAU

PHOENIX FARM , Pachnehi

(On 15th July 2023, 09:00 hrs)


प्राकृति सिंगार महोत्सव 15 व 16 जुलाई 23

प्राकृतिक सिंगार महोत्सव 15 और 16 को जुलाई 2023 को बांधा मैं आयोजित किया जारहा है। जिसका उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा कार्बन को कम करने के लिए वृक्षारोपण एवं उससे आजीविका सुनिश्चित करना है। इसी तारतम्य में 15 तारीख में कचहरी में वृक्षारोपण ,फिनैक्स फॉर मैं संगोष्ठी गूगल व अन्य पौधों का पौधारोपण, कुर्सेला धाम मैं संगोष्ठी और भोजन उसके बाद लटर्रा मैं वृक्षारोपण व संगोष्ठी का आयोजन किया गया इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वाइस चांसलर कृषि विश्वविद्यालय के श्री नरेंद्र सिंह बांदा रहे कार्यक्रम का संयोजन आदरणीय एडीजे बीएसएफ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया रहे। कार्यक्रम में औषधि व अन्य पौधों से आजीविका सुनिश्चित करना कार्बन नियंत्रित करने के उद्देश्य से प्रकृति के संरक्षण से मानव जीवन सुरक्षा ऐसा कहां श्री राजा बाबू सिंह जी ने उन्होंने यह भी बताया के हमें विविधता अपनाने की आवश्यकता है जिससे प्रकृति में संतुलन बना रहेगा और मानवौ को कुपोषण से मुक्ति दिलाई जा सकती है। इस अवसर पर सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरैना द्वारा गूगल पौधे दिए गए व उनका पौधारोपण कराया गया तथा गूगल पर वक्तव्य दिया गया।

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गूगल पौधारोपण, से प्रसन्न किसान।

गूगल संरक्षण, मानव रक्षाण। गूगल के पौधारोपण से इस बीहड़ी भूभाग पर चार प्रकार के लाभ होते हैं। पहला गरीबों की आजीविका सुनिश्चित होती है, दूसरा बीहड़ कटाब रुकता है । तीसरा पर्यावरणीय लाभ होता है । चौथा नौसौ कंपनियों की मांग की पूर्ति के साथ-साथ संकटमय प्रजाति का संरक्षण होता है । इन्हीं लाभौ को देखते हुए, सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरैना द्वारा पूर्व से किए गए गड्ढे,खाद और पौधों की व्यवस्था से आज ग्राम नयावास पोरसा ब्लाक में गूगल पौधौ का पौधारोपण कराया जा रहा है। यहां पर 3000 पौधों का रोपण किया जारहा है यह कार्य 3 , 4 दिन से चल रहा है। तथा पूरे पौधे लग जाने के बाद ही समाप्त होगा। हमारी नर्सरी से याहा पौधे लाए गए हैं। किसान अपने ट्रैक्टरों से खेतों पर लेजा कर पौधारोपण कर रहे हैं। वनों और पौधों का संरक्षण तभी संभव है जब, जो स्थानी प्रजातियां हैं उससे लोगों को लाभ होगा, तथा उनमै पानी की आवश्यकता भी कम होगी, इसलिए इन प्रजातियों का प्रचार प्रसार और लाभौ को भली-भांति किसानों को समझाया जाए, क्योंकि जन समुदाय के सहयोग से ही हरियाली लाना संभव है। हरियाली ही खुशहाली है।

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मिश्रित औषधि खेती से किसानों की आय 4 गुनी होगी।

देव सुवानी ग्यारस एवं ईद की हार्दिक शुभकामनाएं आज दिनांक 28 जून 2023 को ग्राम बामसौली तहसील सबलगढ़ में श्री धीरेंद्र सिंह जादौन एवं पांच अन्य अधिकारियों के 1 हेक्टेयर खेत में मिश्चित खेती के रूप में एक मॉडल विकसित किया है। जिसमें 1000 गूगल के पौधों का रोपण आज पूर्ण किया गया। इस खेत में 1000 पौधे गुगल के पूर्व से लगे हुए थे। तथा बीच में अश्वगंधा लगा हुआ है ।और 3500 पैठे के बीजों का रोपन दिनांक 25 जून 2023 से आज दिनांक 28 जून 2023 तक किया गया यह मॉडल एक सफल मॉडल है। जिसकी सफलता हम पिछले वर्ष देख चुके हैं । यह एक हेक्टेयर जमीन असिंचित है । असिंचित जमीन के लिए यह मॉडल बड़ा महत्वपूर्ण साबित हुआ है। क्योंकि यह जो औषधि पौधों का रोपण किया गया है। उसमें सिंचाई की आवश्यकता ही नहीं है। क्योंकि गूगल में पानी की जरूरत नहीं है। अश्वगंधा में भी पानी दैने जरूरत नहीं है। और पैठा भी बरसात के जल से ही, फलता फूलता है। इसलिए असिंचित भूमि वाले किसानों से मेरा अनुरोध है के वह इस मॉडल को देखते हुए खेती करें तो किसानों की आय 4 गुनी हो जाएगी। चूंकि 35000 हेक्टेयर जमीन बीहड़ में भी असिंचित है। तथा कुछ जगह का वाटर लेवल इतना नीचे चला गया है। की अब भविष्य में इसी प्रकार की खेती करने की जरूरत होगी ।इस बदलते हुए मौसम के मिजाज को देखते हुए अन्नदाता किसानों को अपनी समझ और सोच को बदलते हुए इस प्रकार के पौधों का रोपण आवश्यक है। मेरा बुद्धिजीवियों, पत्रकारों ,वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के लोगों से भी यही अनुरोध है के इस प्रकार की खेती कर किसानों को लाभान्वित करें और इसका समुचित प्रचार प्रसार करें। क्यों कि उपरोक्त दोनों ही पौधे ऐसे हैं जिन्हें पशु भी नहीं खाते हैं क्योंकि यह एंटीबायोटिक है। वृक्ष न खाते अपना फल, नदियां ना पीती अपना जल सेवा त्याग की इस मिसाल सा अपना भी हो मन निर्मल। वृक्ष लगाने से बड़ा पुण्य इस पृथ्वी पर दूसरा कोई नहीं है। वृक्षों की महानता यह है पेड़ से हमें आजीविका के साथ ही साथ औषधि,फल, फूल, लकड़ी और प्राण वायु ऑक्सीजन मिलती है। पेड़ भूमि के तापमान को नियंत्रित करने में सहायक है। पेड़ हानिकारक कार्बनडाई ऑक्ससाइड को अवशोषित करते है और ऑक्सीजन देते है। ऑक्सीजन के बिना पृथ्वी पे कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता है।

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आई आई बहार बरसात की, कि बीहड़ बिन मोहि कल ना परै।

बीहड़ फूले केम करील रे। बागनि बेला बहार रे, कै उन बिन मोहि कल ना परै। चम्बल के बीहड़ में इन दिनों करील के फूलों की बहार है। हरियाली के समुद्र में जगह जगह गुलाबी फूलों के टापू। सुना है कि जापान में जब चेरी के जंगल फूलों से लद जाते हैं तो वहाँ के लोग उस मनोहारी दृश्य को निहारने दूर तक जाते हैं।

करील के फूलों की शोभा यहाँ कौन निहारे। महाकवि सूरदास भी लिख गये- ' जिन मधुकर अम्बुज रस चाख्यौ क्यों करील फल भावै। '

चम्बल के बीहड़ों में लोग ककोरा ढूंढ़ने जाते हैं। सतावर की जड़ें खोदते हैं। गूगल गौद देखने जाते हैं लेकिन करील के फूलों की छटा निहारते हुए कोई नहीं दिखाई देता। जबकि इसकी झाड़ियों में खिले फूल जापानी पुष्प सज्जा की कला ' इकेबाना ' से मेल खाते हैं। इस की टैटी अचार हेतु मथुरा तक के लोग यहां तोड़ कर ले आते हैं ।इस के अचार की यह तासीर है के यह पेट विकारों के लिए रामबाण का काम करता है। तथा इसकी तासीर गर्म है सर्दियों में गर्मी का एहसास दिलाता है।

करील फल जिसे टैटी कहते हैं इस का अचार बनता है।

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चंबल अंचल का गूगल गौद बना बेशक‍ीमती, स्टार्टअप से अब दूर देश तक पहुंच रहा औषधिय महत्त्व।

भारत में गूगल आम जन का धूप हवन माना जाता था. ग्रामीण इलाकों में इसका आज भी रोजमर्रा की जिंदगी में अच्छा खासा दखल है. नवदुर्गा में इसका विशेष महत्व है। आज लोग इसके औषधि महत्व को समझे हैं कालांतर में विकास की दौड़ में हांफते शहरी जीवन की प्राकृति से दूरी हो गयी. कीटनाशक वा रासायनिक खादो तथा हाइब्रिड ने लोगों के जीवन में बीमारियों का घर बना दिया है गूगल 60 बीमारियों में काम आती है जिससे योगराज गूगल चंद्र वटी एवं विभिन्न दबाए बनती है आज मुरैना जिले में 35000 हेक्टेयर जमीन बीहड़ में परिवर्तित होने से तमाम लोग भूमिहीन एवं वेघर हुए लोगों को जीवन जीने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था गूगल ने प्रदान की तथा शहरों की ओर पलायन रोका एक किसान का स्टार्टअप न सिर्फ सेतु की भूमिका निभा रहा है, बल्कि किसानों की आय में इजाफा करने का माध्यम भी बन गया है. हमारा प्रयास यह है कि जो विदेशों से गूगल आए वह यही पैदा हो जिससे अरबों रुपए पाकिस्तान जाने से बचे तथा बीहड़ों में हरियाली आए स्थानी प्रजाति से देश का भला हो तथा नौसौ कंपनियों की मांग पूरी हो, मेरी शासन प्रशासन से यह अपील है कि बीहड़ों में बेकार भूमि पड़ी है उसमें गूगल व अन्य औषधि पौधों का रोपण अधिक से अधिक कराने में सहयोग प्रदान करें जिससे देश का व गरीबों का भला होगा जिससे अच्छी और सस्ती औषधियां लोगों को प्राप्त हो तथा गूगल और जैव विविधता का संरक्षण एवं संवर्धन हो धन्यवाद जाकिर हुसैन

Sujariti Programmes Sujariti Programmes Sujariti Programmes कृषि वानिकी पर राज्य स्तरीय कार्यशाला आयोजित।

सामुदायिक भागीदारी से ही बढ़ती हैं हरियाली कृषि वानिकी महत्त्व एवं जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्राकृतिक समाधान को लेकर ,पलाश होटल में दिनांक 12 अप्रैल 2023 को आयोजित की गयी जिसकी खूबसूरती यह रही के इसके मुख्य अतिथि के रूप में श्री जेएन कंसोटिया अपर मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉक्टर पी सी दुबे साहब तथा वन विभाग के आला अफसर श्री आर के गुप्ता प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख ,श्री अतुल जैन वन संरक्षक अनुसंधान एवं विस्तार तथा पीसीसीएफ, सीसीएफ डीएफओ एसडीओ तथा वन विभाग के अन्य अधिकारी तथा वैज्ञानिक ,प्रदेश के विभिन्न अंचलों से पधारे कृषक, सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरैना से जाकिर हुसैन कार्यक्रम में कृषक वैज्ञानिकों तथा विभाग के अफसरों द्वारा अपने अनुभव शेयर किए गए। संस्था की ओर से हमारे द्वारा गूगल पर किए गए मॉडल के रूप में कार्य को प्रजेंट किया गया। कार्यक्रम में डॉक्टर पी सी दुबे साहब जो कि एक युगपुरुष है ।उन्होंने मार्गदर्शन एवं दिशा दर्शन दिया, श्री जेएन कंसोटिया साहब और श्री आर के गुप्ता साहब तथा श्री अतुल जैन साहब द्वारा सभी प्रतिभागियों का इस विषय पर ज्ञानवर्धन व दिशा दर्शन किया गया कार्यक्रम इतना सराहनीय इसलिए भी रहा कि बिल्कुल ठीक समय पर और सभी बिंदुओं को पूर्ण रूप से प्रस्तुतीकरण किया गया। जिसका लाभ प्रतिभागियों को हुआ कार्यक्रम पूर्ण सफलतापूर्वक संपादित हुआ।


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औषधीय पौधों और जंगल, हमारे फेफड़े है।

कैसी नोनी लगत बुंदेली,जैसै नारि नवेली। संस्कृत की बिटिया है जौ ब्रिज की परम सहेली।। केशव तुलसी सूर ईश्वरी सबके घर में खेली, बुंदेली कैसी नोनी लगत बुंदेली।


Bundelkhand की बुन्देली भाषा के विख्यात महाकवि ईसुरी ने फाग विधा मे चौकड़िया फाग की रचना कर बुन्देली साहित्य को एक नई दिशा दी। ईशुरी की चौकड़ीयौ मे जीवन दर्शन और अध्यात्म तथा लोकसंगत ढंग से लोक की बात कह दी जो जनमानस के मन को छू गई। सुन आए सुख होई, दई देवता मोई।


इनपै लगे कुलरिया घालन , महुआ मानस पालन। इन्हें काटिबौ नहीं चाहिए, काटि देत ये कालनि। महुआ मानस पालन।


शीतल येई नीम की छईया घामौ व्यापत नहिया, धरती नो जे छू छू जबै, है लालोई डरइया।


पेड़ ही प्रदूषण के जहर को पचाते हैं। हारी बीमारी से हमको बचाते हैं।।


बुंदेली के बोल तई परतई ऐसों चैन। जैसे पौड़ा ईख कौ चूसते भईया बैन।।


जीवन की सबसे अनिवार्य आवश्यकता है ऑक्सीजन प्राणवायू हमें पेड़ों से ही प्राप्त होती है।आज हम आकलन करें तो समझ में आता है कि जब भारत आजाद हुआ था तब भारत की जनसंख्या साडे 36 करोड़ थी तथा भारत भूमि पर जंगल 37 परसेंट थे आज भारत की आवादी बढ़कर 135 करोड़ हो गई तथा जंगल घट कर 17 परसेंट रह गए, जबकि धरती पर वनों का छत्र 33 परसेंट होना आवश्यक है मांग और पूर्ति के हिसाब से देखें हमारे पूर्वजों ने हमें उचित वातावरण में छोड़ा था परंतु हम आने वाली पीढ़ी को जहरीले सांस लेने को छोड़े जा रहे हैं। और कहते हैं कि हम सब बच्चों के लिए कर रहे हैं। क्या यह न्याय उचित है।


मजे की बात यह है कि इसके संरक्षण और संवर्धन में सभी लगे हैं। शासन-प्रशासन विभाग संस्थान ,बोर्ड और जनसामान्य फिर भी वन आच्छादन घटता जा रहा है यह कैसा काम होरहा है। जरा सोचो, बेशक उसी का दोष है,कहता नहीं खामोश है।


वन से जल है तो जीवन है यही सबसे बड़ा धन। है।धन्यवाद


जाकिर हुसैन
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दूरदर्शन भोपाल से प्रसारण, कृषि दर्शन कार्यक्रम में।

मानव जाति के जीवन में तकनीकी उन्नति के साथ-साथ प्राकृतिक संपदा को संरक्षित रखने के लिए उच्च स्तर की जागरूकता की आवश्यकता है मनुष्य की सभी भौतिक आवश्यकताएं प्रकृति से ही प्राप्त होती हैं प्रकृति एक रहस्यमय वह अभिव्यक्ति है जो प्राकृतिक ऊर्जा और गतिशीलता के साथ मनुष्य का कायाकल्प करती है प्रकृति हमारी एकमात्र आपूर्ति करता है। इसी उद्देश्य को लेकर संस्था द्वारा जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन हेतु विभिन्न कार्य किए गए हैं उसी कड़ी में 6 अप्रैल 2023 को भोपाल दूरदर्शन से गूगल संरक्षण एवं संवर्धन को लेकर प्रसारण 5:30 कथा 7 तारीख को सुबह 7:30 बजे प्रसारण किया जाएगा कृपया सभी लोग देखने की कृपा करें।

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वन क्षेत्र मैं सतत एवं स्थाई विकास की आवश्यकता एवं प्रक्रियाओं पर हित ग्राहकों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम दिनांक 23 से 25 मार्च 2023 को विज्ञान भवन भोपाल में आयोजित किया गया मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीय परिषद प्रौद्योगिकी विभाग मध्यप्रदेश शासन द्वारा इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में वनो के सुधार एवं पर्यावरण संरक्षण औषधि पौधा गूगल पर किये गए विशेष प्रयासों का अनुभव शेयरिंग एवं प्रशिक्षण, संस्था अध्यक्ष जाकिर हुसैन द्वारा दिया गया तथा उन्हें इस अवसर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव सहाव द्वारा सम्मान एवं प्रतीक चिन्ह प्रदान किया गया।

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जाकिर जी,

आपकी सारी सहायता के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद। G20 प्रतिनिधियों ने उत्पादों को पसंद किया, और सुजागृति के काम के बारे में अधिक जानने के लिए उत्साह व्यक्त किया। आपसे बात-चीत करके बहुत अच्छा लगा। भविष्य में और अधिक कार्यक्रमों और एक्टिविटीज़ के लिए आपसे जुड़ने की आशा है! ग्रीन हाट प्रदर्शनी स्थल से एक तस्वीर साझा कर रही हूँ जहाँ उत्पादों को प्रदर्शित किया गया था।

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गूगल की खेती किसानों के लिए वरदान।

गुग्गुल या 'गुग्गल' एक वृक्ष है। इससे प्राप्त राल जैसे पदार्थ को भी 'गुग्गल' गौद कहा जाता है। भारत में इस जाति के दो प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं। एक को कॉमिफ़ोरा मुकुल (Commiphora mukul) तथा दूसरे को कौमीफोरा बाईटी(C. Wightii) कहते हैं। हमारे वहां कौमीफोरा बाईटी प्रजाति की गूगल है गुग्‍गल एक छोटा पेड है जिसके पत्‍ते छोटे और एकान्‍तर सरल होते हैं। यह सिर्फ वर्षा ऋतु में ही वृद्धि करता है तथा इसी समय इस पर पत्‍ते दिखाई देते हैं। शेष समय यानि सर्दी तथा गर्मी के मौसम में इसकी वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है तथा पर्णहीन हो जाता है। सामान्‍यत: गुग्‍गल का पेड 3-4 मीटर ऊंचा होता है। इसके तने से सफेद रंग का दूध निकलता है जो इसका का उपयोगी भाग है। प्राकृतिक रूप से गुग्‍गल भारत के मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्‍थान तथा गुजरात राज्‍यों में उगता है। भारत में गुग्‍गल विलुप्‍तावस्‍था के कगार पर आ गया है, अत: बडे क्षेत्रों मे इसकी खेती करने की जरूरत है। भारत में गुग्‍गल की मांग अधिक तथा उत्‍पादन कम होने के कारण अफगानिस्तान व पाकिस्तान से इसका आयात किया जाता है। गूगल गौद का उपयोग 60 बीमारियों में काम आता है तथा गूगल के वृक्ष से निकलने वाला गोंद ही गूगल नाम से प्रसिद्ध है। इस गूगल से ही महायोगराज गुग्गुलु, कैशोर गुग्गुलु, चंद्रप्रभा वटी आदि योग बनाए जाते हैं। इसके अलावा त्रिफला गूगल ,गोक्षरादि गूगल, सिंहनाद गूगल और चंद्रप्रभा गूगल आदि योगों में भी यह प्रमुख द्रव्य प्रयुक्त होता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जिला मुरैना में बढ़ते बीहड़ और घटती हुई उपजाऊ भूमि के कारण यहां 35000 हेक्टेयर भूमि बीहड में परिवर्तित हो चुकी है जो बेकार पड़ी है बीहड़ों में खेती नहीं होने से वहां के किसानों की आर्थिक स्थिति जर्जर हो चुकी है लेकिन ईश्वर ने गूगल के पौधे के रूप में जिसका गौद आयुर्वेदिक एवं यूनानी और औषधि में प्रयोग किया जाता है जिसकी अपार संपदा प्रदान की है क्योंकि गूगल यही सबसे अच्छी फलीभूत होती है जिससे इस क्षेत्र में आर्थिक खुशहाली की अपार संभावनाएं हैं औषधियों के अतिरिक्त परफ्यूमरी, धूप,हवन सामग्री आदि धार्मिक कार्यों में भी भरपूर मात्रा में गूगल का प्रयोग होता है जिसके कारण गूगल गौद आज ₹2000 प्रति किलो की दर से बिक रहा है देश में करीब 900 आयुर्वेदिक यूनानी औषधि निर्माता है औषध रूप में गूगल का काफी प्रयोग होता है जो कि पाकिस्तान से आयात होता है देश में गूगल की खपत करीब 2500 से 3000 टन है और ऑल ओवर इंडिया में और पैदावार सिर्फ 10 टन है जोके गुजरात और मध्य प्रदेश के मुरैना क्षेत्र से होता है। इससे यह स्पष्ट है कि इस ग्लोबल वार्मिंग के समय में हमारी जो बीहड़ में बेकार पड़ी हुई जमीन जिसमें कि गूगल बड़े अच्छे तरीके से होता है इसे पशू भी नहीं खाते हैं तथा इसे पानी की भी जरूरत नहीं है इसकी खेती की जाए तो पूरे भारत की मांग भी पूरी हो सकती है और जो विलुप्त होती हुई प्रजाति भी बच सकती है पर्यावरणीय लाभ भी होगा तथा बीहड़ कटव भी रुकेगा और सबसे महत्वपूर्ण कार्य स्थानीय प्रजाति से यहां के जो भूमिहीनों बेघर हुए किसानों की आजीविका का साधान उपलब्ध होगा जिससे गरीबों की आजीविका तो सुनिश्चित होगी ही उनके बच्चों का भविष्य समरेगा । क्षेत्र में सूजागृति संस्था द्वारा 15 , 16 साल के अथक प्रयासों से इसे बचाया गया है इसकी नर्सरिया बनाई गई ,प्लांटेशन किए गए बिनाश हीन विदोहन किया गया ,भंडारण सिखाया गया और मार्केटिंग व्यवस्था बनाई गई एक मॉडल के रूप में 7 गांवों में कार्य किया गया इसे अपना कर बड़े क्षेत्र में कार्य करने की आवश्यकता है मैं शासन ,प्रशासन और वैज्ञानिकों से विनम्रता पूर्वक अनुरोध करता हूं कि इस पुनीत कार्य में सहभागिता करते हुए बृहदस्तर पर इस कार्य को किया जाए ताकि इस स्थानीय गूगल की कम खेती की वजह से हमारे देश का अरबों खरबों रुपए पाकिस्तान जाने से बचे साथी गरीबों की आजीविका सुनिश्चित हो सके धन्यवाद जाकिर हुसैन

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गूगल विस्तार से सफलतम परिणाम की ओर हितग्राहीयौ को लेजाते हुए। महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ।

आज उ प्र के इतिहासिक नगर आगरा के दयालबाग में आदरणीय अनिल ओवराय जी प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन बल के निवेदन अनुसार यहां पर गूगल का पौधारोपण गत वर्ष 2012 और 13 में किया गया था ।आज यहीं पर इन पौधों को देखकर बड़ी प्रशंसा और ह्रदय आनंदित हुआ देश के अनेकों स्थानों पर हमारे द्वारा पौधारोपण किया गया है जैसे मदुरई, जयपुर, आगरा ,दतिया , मुरैना तथा कई अन्य स्थानों पर रोपण तथा हमारे द्वारा पौधे दिए गए हैं।जबलपुर भोपाल, दिल्ली, अहमदाबाद, सवाई माधोपुर ,शिवपुरी भिंड और ग्वालियर में समस्या यह है कि हितग्राही किसानों को यह ज्ञात ही नहीं है कि गूगल से गोंद कैसे निकाला जाता है तथा गूगल के बीच संग्रह कैसे और कब किए जाते है उनसे पौधे कैसे तैयार होते हैं इसी समस्या के निदान हेतु हमारे द्वारा कुछ वीडियो ग्राफ फोटो और प्रेजेंटेशन तैयार कर हितग्राही किसानों, संस्थाओं, वन विभाग एवं विद्यार्थियों, जिज्ञासु को भेज रहे हैं। जिससे वे अज्ञानता के अभाव में कोई गलती ना करें और गूगल सतावर का संरक्षण और संवर्धन करें क्योंकि वर्तमान में गूगल की दैनीय स्थिति के कारण सिर्फ पूरे भारतवर्ष में 10 टन पैदावार हो रही है। जबकि 3000 टन भारत में इसकी मांग है। आज गूगल गौद ₹2000 केजी चल रहा है। देश के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करने हेतु बढ़ती हुई मांग की पूर्ति ,बेकार पड़ी हुई भूमिका उपयोग, भूमि कटाव रोकने हेतु एवं पर्यावरण लाभ को देखते हुए गूगल का संरक्षण और संवर्धन करना अनिवार्य आवश्यकता महसूस होती है। गूगल के संरक्षण के लिए सही तरीके से चीरा लगाना एवं सही फल संग्रह करना दोनों ही आवश्यक है।

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वन परिक्षेत्र सबलगढ़ के द्वारा अनुभूति कार्यक्रम का आयोजन पाटइ बाले हनूमान मंदिर व जंगल में आयोजित किया गया।

वन परिक्षेत्र सबलगढ़ के द्वारा अनुभूति कार्यक्रम का आयोजन पाटइ बाले हनूमान मंदिर व जंगल में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ रेंज केंपस से श्री भूरा गायकवाड़ साहब अधीक्षक देवरी व ज्योति डंडोतिया द्वारा जल ही जीवन एवं जलीय जीवों पर विशेष जानकारी दी गई सबलगढ़ मुरैना 28 जनवरी 2023/विद्यार्थी भविष्य के नागरिक है, इन्हीं नागरिकों में कई डॉक्टर, कई इंजीनियर तो कई अन्य पदों पर रहकर देश की सेवा करेंगे। आज इन्हीं विद्यार्थियों को प्रकृति के प्रत्यक्ष अनुभूति कराने के लिये पाटइ हनूमान मंदिर की तलहटी में जंगल भ्रमण कराया गया। तथा महत्त्व को समझाया, व अनुभूति कराई। जंगल में वन्य प्राणी, जलीय जीवों एवं पर्यावरण के महत्व तथा इनके संरक्षण के प्रति विद्यार्थियों में जागरूकता लाई गई। उन्हें संवेदनशील बनाने के लिये और उनके द्वारा जन-जन तक संदेश पहुंचाने के मकसद से अनुभूति कार्यक्रम का आयोजन पिछले दिनों से चल रहा है।

कार्यक्रम में श्री जाकिर हुसैन ने बच्चों को यह प्रेरणा दी कि बच्चे संवेदनशील होकर पर्यावरण प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन करें। क्योंकि जल से वन है तो जीवन है। यही सबसे बड़ा धन है। वन हमारे फैफड़े हैं, इनके बगैर जीवन की कल्पना व्यर्थ है। पेड़ न खाते अपना फल, नदिया न पीती अपना जल सेवा त्याग की। इस मिसाल को विद्यार्थियों के मन निर्मल मन में भाव जगाया। ईश्वर को साक्षी मानते हुए पर्यावरण के संरक्षण के लिये निष्ठा पूर्वक शपथ दिलाई।माननीय भूरा गायकवाड अधीक्षक मुरैना उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रकृति में एक जीव दूसरे पर आधारित है। इसलिए उनका और उनके आवासों का संरक्षण और संवर्धन करने की आवश्यकता है और यह प्रेरणा दी जो मेहनत करता है, वही पाता है। प्रकृति की गोद में ही हम पलते बढ़ते हैं। इसलिए इसका संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है। उनके द्वारा वन विभाग की संरचना को बच्चों को समझाया गया तथा वन सेवा में कैसे आप लोग जा सकते हैं, उनके द्वारा बताया गया। इस अवसर पर बच्चों के लिए गए एग्जाम के रिजल्ट अनुसार फर्स्ट सेकंड थर्ड आए बच्चों को पुरस्कार व सर्टिफिकेट प्रदान किये। रेंज सबलगढ़ के अंतर्गत अनुभूति कार्यक्रम वर्ष 2022-23 का आयोजन, गवर्नमेंट स्कूलो सबलगढ़ , के 130 छात्र-छात्राएं, 8 शिक्षक, शिक्षिकाऐ सबलगढ़ के एसडीओ माननीय राकेश लहरी साहब सबलगढ़ रेंज के रेंज ऑफीसर श्री अभिषेक शर्मा द्वारा भी समझाइश दी गई कि जंगलों का संरक्षण कैसे करें मास्टर ट्रेनर श्री जाकिर हुसैन, व सबलगढ़ रेंज के वन कर्मचारी श्री सौरभ शर्मा धर्मवीर सिंह धर्मेंद्र श्रीवास्तव अन्य वन कर्मी की गरिमामयी उपस्थिति में आयोजित किया गया।

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दिनांक 27 जनवरी 2023 को सामाजिक वानिकी व्रत ग्वालियर द्वारा देवरी रोपणी मुरैना पर 1 दिवशीय कार्यशाला प्रशिक्षण का आयोजन जिसमें पौधे कैसे तैयार किए जाएं औषधि पौधे गूगल के विस्तार हेतु व विभिन्न रोपणीयौ में वनी पौधे तैयार करने हेतु तकनीकी जानकारी के लिए गूगल संरक्षण, मानव रक्षण,पर जानकारी दी श्री जाकिर हुसैन सु जागृति समाज सेवी संस्था मुरैना ,केवीके से डॉक्टर गुर्जर साहब पौधे कैसे तैयार करें ,ई गवर्नेंस पर जानकारी देने हेतु मिस्टर मुकेश कुमार साहब वा माननीय एसडीओ एस,पी शाक्य साहब आरएंडी की गरिमामय उपस्थिति में ग्वालियर चंबल संभाग के आठौ जिले के रेंजर डिप्टी रेंजर व वनकर्मियों की प्रतिभागिता में कार्यशाला का आयोजन किया गया जो कि बडा सार्थक रहा।

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अनुभूति कार्यक्रम का आयोजन पढ़ावली के बटेश्वर में आयोजित किया गया

अनुभूति कार्यक्रम का आयोजन पढ़ावली के बटेश्वर में आयोजित किया गया मुरैना 21 जनवरी 2023/विद्यार्थी भविष्य के नागरिक है, इन्हीं नागरिकों में कई डॉक्टर, कई इंजीनियर तो कई अन्य पदों पर रहकर देश की सेवा करेंगे। आज इन्हीं विद्यार्थियों को प्राकृतिक की प्रत्यक्ष अनुभूति कराने के लिये ऐतिहासिक स्थल पढ़ावली की घड़ी एवं बटेश्वर मंदिर की तलहटी में जंगल भ्रमण कराया गया। पढ़ावली की घड़ी वह बटेश्वर का ऐतिहासिक महत्त्व को समझाया, अनुभूति कराई। जंगल में वन्य प्राणी, जलीय जीवों एवं पर्यावरण के महत्व तथा इनके संरक्षण के प्रति विद्यार्थियों में जागरूकता लाई गई। उन्हें संवेदनशील बनाने के लिये और उनके द्वारा जन-जन तक संदेश पहुंचाने के मकसद से अनुभूति कार्यक्रम का आयोजन पिछले दिनों से चल रहा है।

कार्यक्रम में श्री जाकिर हुसैन ने बच्चों को यह प्रेरणा दी कि बच्चे संवेदनशील होकर पर्यावरण प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन करें। क्योंकि जल से वन है तो जीवन है। यही सबसे बड़ा धन है। वन हमारे फैफड़े हैं, इनके बगैर जीवन की कल्पना व्यर्थ है। पेड़ न खाते अपना फल, नदिया न पीती अपना जल सेवा त्याग की। इस मिसाल को विद्यार्थियों के मन निर्मल मन में भाव जगाया। एसडीओ श्री प्रतीक दुबे ने ईश्वर को साक्षी मानते हुए पर्यावरण के संरक्षण के लिये निष्ठा पूर्वक शपथ दिलाई। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रकृति में एक जीव दूसरे पर आधारित है। इसलिए उनका और उनके आवासों का संरक्षण और संवर्धन करने की आवश्यकता है।

डीएफओ श्री स्वरूप दीक्षित ने बच्चों को यह प्रेरणा दी जो मेहनत करता है, वही पाता है। प्रकृति की गोद में ही हम पलते बढ़ते हैं। इसलिए इसका संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है। उनके द्वारा वन विभाग की संरचना को बच्चों को समझाया गया तथा वन सेवा में कैसे आप लोग जा सकते हैं, उनके द्वारा बताया गया। इस अवसर पर प्रवक्ता के रूप में डॉक्टर विनायक सिंह तोमर, प्राध्यापक गर्ल्स कॉलेज मुरैना व सीएम राइज हाई स्कूल सुरजनपुर के प्रिंसिपल शर्मा ने भी सार्थक उद्बोधन दिए। बच्चों को पुरस्कार व सर्टिफिकेट प्रदान किये। रेंज मुरैना के अंतर्गत अनुभूति कार्यक्रम वर्ष 2022-23 का आयोजन सीएम राइज हाईस्कूल सुरजनपुर के 120 छात्र-छात्राएं, 4 शिक्षक, डीएफओ, एसडीओ, प्रोफ़ेसर विनायक तोमर, हाईस्कूल के प्रिंसिपल शर्मा, मुरैना रेंज की रेंज ऑफीसर श्रीमती श्वेता त्रिपाठी, मास्टर ट्रेनर श्री जाकिर हुसैन, संतोष कुशवाह व वन कर्मी की गरिमामयी उपस्थिति में आयोजित किया गया।

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मुरैना स्टॉल पर प्रतीक हजेला साहब मुख्य सचिव आयुष एवं निशक्तजन कल्याण मंत्रालय मध्यप्रदेश शासन, गूगल के विषय में जानकारी लेते हुए। अंतर्राष्ट्रीय वन मेला भोपाल में।
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9th World Ayurveda Congress में आरोग्य एक्सपो (AROGYA Expo) और औषधीय पादप विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार (International Seminar on Medicinal Plants), कला अकादमी, गोवा* मैं सहभागिताकी आज दिनांक 11,12,2022 को उप सचिव माननीय पंकज शर्मा जी आयूष मंत्रालय म, पी, शासन माननीय पी,एम नरेन्द्र मोदी सहाब के आने से पूर्व आयुष इस्टौल को देखा और अन्य स्थानों को देखा इस कार्यक्रम में माननीय प्रधानमंत्री जी के आने से अपने देश और विभिन्न देशों से पधारे आयुर्वेद प्रेमियों व कंपनियों, संस्था और शासन द्वारा लगाई गई स्टाल काबिले तारीफ थी और विभिन्न कार्यक्रमों से निश्चित रूप से औषधियों का संरक्षण एवं संवर्धन होगा यह कार्यक्रम बड़ा भव्य शालिनी और गरिमामय हुआ।

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गूगल पर,, मुरैना में सुजागृति समाज सेवी संस्था द्वारा किए गए कार्य पर यह कार्यक्रम

कल 10 सितंबर को कार्यक्रम का प्रसारण शाम 7:00 बजे डीडी किसान चैनल पर होगा कार्यक्रम का नाम कृषि विशेष। गूगल पर,, मुरैना में सुजागृति समाज सेवी संस्था द्वारा किए गए कार्य पर यह कार्यक्रम है गूगल के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता राष्ट्रीय स्तर पर भी महसूस होने लगी कृपया जरूर देखें।

यह बिकास की अंधी दौड़ कहा लेजाकर जाएगी? जाकिर हुसैन

जिसने हमें दीया ही दिया उन्हें मिटाएं क्यों । जंगल में मंगल जो करते उन्हें मिटाएं क्यों।। प्राकृती के अंदर उसकी एक खाद्य श्रंखला होती है जब खाद्य श्रृंखला की एक कड़ी टूटने पर पूरा सिस्टम बिगड़ जाता है जैसे जंगल में शेरों के ना होने पर उसकी सुरक्षा वृक्षों के ना होने पर जीवो के रहबास पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ हो जाता है आज विकास की दौड़ में प्रकृति का पुरा सिस्टम अन बैलेंस हो गया है जैसे आजसे 50 वर्ष पूर्व हमारे गांव बामसौली के ऊपर पठारी घाटी पर बड़ा सघन वन था प्राचीन समय में यहाँ के सघन वन पर एक कहावत थी कि,
घूम घूमारी सघन वन जारी।
तब लेगी कमर लच कारी।।

दर असल यह एक प्रेमी प्रेमिका के नृत्य पर आधारित प्रसंग था जिसमे प्रेमिका अपनी प्रेमी की तरह नृत्य नही कर रही था। इसलिए उलाहना देते हुए प्रेमी ने कहा कि "अगर तू एक बार भी कैमोर के चुचामन पर्वत श्रंखला के घने वन से यात्रा पूरी किये होती तो तेरी कमर लोचदार हो जाती ।" क्यों कि इन पर्वतों के बीच चलते समय कभी झुक कर तो कभी बैठ कर झाडियो के बीच से जाना पड़ता था।

अभी 70--80 साल पहले का घना जंगल हमारे पूर्वज बताते थे कि हमेरे गाँव के ऊपर से ही पठार का विस्त्रत भूभाग था ,जहॉ यदि कोई यात्रा करते तो 4-5 के समूह में। अकेले दुकेले की तो हिम्मत ही नही थी। बाघ तेंदुए गुलबाघ इतने कि पहाडगढ नरेश का हॉका कभी इस गाँव तो कभी उस गाँव में लगा ही रहता। कहते है कि उनने अपने जीवन काल में कई बाघों का शिकार किया था।

गर्मी के दिनों हमारे गाँव के समीप अक्सर बच्चो के साथ बाघिन आ जाती और घाटी नीचे बैठे पशुओं को खा जाती । फिर जानबरो के मुह से विशेष प्रकार की आवाज सुन लोग समझ जाते और गोहार लगाते दौड़ते तो कभी - कभी गाय बैलों को बचा भी लेते।

किन्तु आज पहाड़ के 64 गाँव वाले क्षेत्र में पालपुर सेंचुरी का एक बाघ भी आजाता है तो तहलका मच जाता है। 15 --20 वन अधिकारियो का दस्ता पीछे लग कर उसकी गति बिधित करता है।

किन्तु बाघ सीघ्र ही इस क्षेत्र से पालायन भी कर जाता है। क्योकि उस के खाने के लिए साम्हर, चीतल, हिरन, रोझ,और सुवर चाहिए । तथा इन शाकाहारियों के लिए भी घास और कई तरह के जंगली फल फूल कन्द आदि जो जंगल समाप्त होने के कारण अब परदेसी बबूल प्रौसोफिस जूलिया फ्लोरा ने उग कर समाप्त कर दिया है।

इतना ही नही इस बिकास रूपी दैत्य ने जंगली जानवरों के साथ - साथ लाबा तीतर, पण्डुक ,तोता ,पेगा, गलरी ,कठफोड़बा, नीलकंठ , आदि तमाम चिड़ियों को भी समाप्त कर दिया है।

किन्तु चिड़िया भी कैसे रहती ? उनके खाने वाले कीट पतंगे फल फूल भी कहा बचे है? कहने का आशय यह कि पूरी भोजन श्रंखला ही समाप्त है।लेकिन यह सब क्यों है ? यह बिकास के अंधी दौड़ क ही तो परिणाम है । जिसमे गगन चुम्बी अट्टालिका, धुँआ उगलती फैक्ट्रियों की बड़ी बड़ी चिमनिया , पक्की सड़कें और करोड़ो के तादाद में कार्बन डाइऑक्साइड उगलती गाड़िया है ।

इधर इनकी दूषित गर्म गैस बादलों को इतना ऊँचा उठा देती है कि बादल वगैर बारिश किये ही यहाँ से उड़ते चल्रे जाते है।

पेड़ न खाते अपना फल नदिया ना पीती अपना जल इन से नाता पुरखों जैसा इन्हें मिटाएं क्यों।


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चंबल में उगता है ताकतवर ककोड़ा, बारिश में बिना खेती ही कमाई का बना जरिया पूरी तरह जैविक व पौष्टिक तत्वों से है भरपूर सब्जी में मीट से भी ज्यादा ताक़त, तथा ककोडा खाने से कैंसर रोग भी नहीं होता है, हार्ड अटैक की संभावना कम हो जाती है इसलिए सीजन में दो बार ककोडा जरूर खाएं चंबल अंचल में करीब-करीब 200 टन ककोडा होता है जिससे हमारे गरीबों की आजीविका भी चलती है और उनके खाने में प्रयुक्त होते हैं देशी जड़ी बूटियां कंदमूल फल खाने के वजह से ही यहां के लोग कम बीमार पड़ते हैं तथा जिस्मानी रूप से बड़े सशक्त और मजबूत होते हैं चंबल नदी में प्रतिवर्ष बाढ़ आने से भी इस अंचल को कुछ नुकसान होते हैं तो कुछ विशेष फायदे भी होते हैं जैसे चंबल नदी हजारों तरह के बीजों को बहा कर लाती है वह प्रजातियां यहां जमती है चंबल बाढ़ के साथ में मिट्टी पने के रूप में डाल जाती है जिससे यहां के किसानों की खेती बहुत अच्छी होती है सबसे बड़ा फायदा यह होता है के यहां का वाटर लेवल बहुत अच्छा हो जाता है और अरबों खरबों का रेत भी आता है चंबल के सीने को फाड़ कर बीहडौ को समतल करके लोग जो ग्राम बनाकर वसे हुए हैं वह बाढ़ से प्रभावित होते हैं जान माल का नुकसान होता है किंतु हमें यह समझने की जरूरत है के वह तो चंबल मैया का आंचल है उस आंचल को फाड़ के बसोंगे तो परेशानी और जान माल का खामियाजा तो भोगना ही पड़ेगा चंबल मैया यहां के लिए वरदान इसलिए भी है कि यह भारत की सबसे स्वच्छ नदी होने के कारण कुछ जली जीव यही होते हैं जैसे घड़ियाल डॉल्फिन मौर मछली इसके साथ ही चंबल के अंचल में गूगल प्रजाति भी फलती फूलती है।
जाकिर हुसैन


Sujariti Programmes Sujariti Programmes Sujariti Programmes पारम्परिक विरासत की खेती और आज का दौर- जाकिर हुसैन सुजागृति

हमारे पूर्वजों ने हमें प्राकृतिक रूप से खेती करने की पद्धतियां दी देशकाल और परिस्थितियां अनुसार लोग विभिन्न अंचलों में विभिन्न प्रकार की खेती किया करते थे जो कि आंचलिक बीज, मिट्टीऔर मौसम पर आधारित थी जैसे उदाहरण के लिए मुरैना जिले का ग्राम बामसौली जहां पहले कोई सिंचाई का साधन नहीं था सिर्फ कुए रहट कौर परहे और डैकुली से थोड़ी बहुत सिंचाई की जाती थी जिस वजह से पूरे अंचल में खरीफ में ज्वार बाजरा मूंग उड़द की खेती की जाती थी और खरीफ में अरहर चना साथ में अलसी शुवा‌ॅ के कूड दिए जाते थे जिन्हें जहिए कहते थे, एही मुख्य रूप से खेती की जाती थी नदी के किनारे कछारी इलाके में गेहूं और जौ हो जाता था इस वजह से सिर्फ 10 परसेंट भूमि ही सिंचित थी और 90 परसेंट असिंचित,लोग बरसात और सर्दी में बाजरा और ज्वार की रोटी खाया करते थे तथा गर्मियों में चने की रोटी खाते थे उस समय जब कोई मेहमान आता था तब गेहूं के फुल्का बनते हैं तो बच्चे मेहमानों का इंतजार करते थे गेहूं के फुल्के खाने के लिए सब्जी में बरसात में चेंच कन्हा लेशुआ बिछौटिया के फूल फाग आदि की भाजी और बड़ी प्याज की सब्जी, सर्दियों में लौकी पैठ भट्टे चना का साग आदि की सब्जी गर्मियों में कद्दू बरी प्याज भट्टे सैगर कच्चे आम की अमिया की सब्जी खाया करते थे उस समय प्रचुर मात्रा में जंगल थे, वाटर लेवल बहुत शानदार था उस समय रुपए की कीमत थी 1965 में सोना ₹270 तौला मिलता था किंतु 1970 से खेती में बदलाव आने लगा और बदलाव आता गया इस बदलाव में किसानों की कमर तोड़ डाली क्योंकि खेती में आधुनिक औजार ट्रैक्टर आने से गाय और बैलों की कीमत धीरे-धीरे खत्म होने लगी और सभी किसानों के पास इस बदली हुई परिस्थिति और औजार यंत्र खरीदने की औकात नहीं थी साथ ही शंकर बीज और कई प्रकार के रासायनिक खाद कीटनाशक इनका भार भी किसानों पर पड़ने लगा इस वजह से बड़े काश्तकार तो इस में सफल हुए किंतु छोटे काश्तकार बड़े परेशान हुए और अब हर चीज खेती में आने वाली पैसों में खरीदी जाने के कारण खेती घाटे का सौदा होने लगी साथ ही कीटनाशक एवं रासायनिक खाद डालने लगा, कोन सी खाद कितनी मात्रा में और कौन सी दवा डालना है इसका भी सही ज्ञान किसानों को नहीं होने के कारण बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा इस विषय पर जानकारी हेतु सरकार द्वारा प्रचुर मात्रा में प्रशिक्षण देने की आवश्यकता थी किंतु ऐसा नहीं हो सका उसका खामियाजा किसानों को ही भोगना पड़ा किसान को सही जानकारी की बड़ा आवश्यक थी उदाहरण के लिए एक बार हमने 5000 गूगल के पौधे लगाए और उनमें दीमक की दवा हमें डालनी थी तब डॉक्टर मौनी थौमस साहब द्वारा दी गई दवा हमारे द्वारा दवा पौधे के ऊपर से डाल दी गई जिससे पौधा झुलस गये जब हमने डॉक्टर मॉनी थॉमस साहब से पूछा उन्होंने बताया कि यह दवा तो तुम्हें पेड़ों की जड़ों में डालनी थी जानकारी के अभाव में पौधे मर गये यह होता है सही जानकारी के अभाव में इसी तरह से हमारे किसान जूझते रहे और खेती में जरूरत से ज्यादा खाद ओ कीटनाशक दवा डाल ने से धीरे-धीरे जमीन खराब होने लगी परिणाम आज यह देखने में आ रहा है कि लोग धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर बढ़ने लगे किसानों को आज खेती को लाभ का धंधा बनाना है तो जमीन के अनुसार कहां कंद मूल फल की खेती करना है कहां जड़ी बूटी की खेती करना है कहां अनाजों की खेती करना है कितना खाद और कीटनाशक डालना है इस पर प्रशिक्षित होना आवश्यक है खेती के साथ में मुर्गी पालन डेरी और मछली पालन की और भी किसानों को जाना चाहिए जैसे चंबल अंचल में जमुनापारी बड़ी बकरियां मुर्रा भैंस बड़ी सफलता पूर्वक गुणकारी दूध दे रही हैं मधुमक्खी पालन बीहड़ में पड़ी हुई बेकार भूमि पर गूगल सतावर अश्वगंधा लगाकर आज किसान अपनी आजीविका को चला सकते हैं साथ ही विभिन्न कंपनियों की मांग पूर्ति कर जनजीवन का स्वास्थ्य लाभ भी दे सकते हैं इसी तरह से देश काल और परिस्थितियों को देखते हुए मिले-जुले स्वरूप में खेती बागवानी पशुपालन मत्स्य पालन औषधि खेती को अपना कर ही आज किसान सुखी और संपन्न हो सकता है विरासत की खेती पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक के मिले-जुले स्वरूप से ही किसानों का भविष्य उज्जवल किया जा सकता है।


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कुंवारी नदी व उसकी किवदंती - ज़ाकिर हुसेन

दुनिया की किसी भी नदी को देखें तो वह दो ही तरीके से निकलती / बहती है पहला वह वन जाई वन से प्रारब्ध होती है या हिम जाई बर्फ से उसका उदगम होता है कुंवारी नदी वन जाई है। यह सिन्ध की सहायक नदी है इसका उद्गम शिवपुरी जिला में बैराड के निकट देवगढ से हैँ। यह मुरैना के पठार के जल विभाजक द्वारा चम्बल तथा कूनो से पृथक हो जाती हैं। पूर्व में चम्बल नदी के सामान्तर बहती हुई सिन्ध नदी से मिल जाती हैँ। कुँवारी नदी के किनारे बसे शहर विजयपुर , कैलारस तथा मुरैना है .इस नदी में सोन नदी और आसन नदी बासरइ नदी मिलती हैं तथा छोटे-छोटे झरने और भी मिले हैं
हमारी ब्रजभाषा और खड़ी बोली में अनेक लोक कथाएं है। जब मै आदिबासी लोककला एवं बोली व लोक कथाओं का संकलन कर रहा था तो दो लोक कथाऐ मुझे इस क्षेत्र की जीवन रेखा मानी जाने वाली नदी कुंवारी की भी मिली थी।
यह ऐसी नदी है जो अपनी अनेक सहायक नदियों का पानी सहेजती सीधे सिंध नदी में जाकर मिलती है।
जब तक इस क्षेत्र में रेल गाड़ी का प्रचलन नही हुआ था उस समय में कुंवारी नदी यहां की आजीविका का साधन बनी रही और अभी भी है
कुंवारी पर जो कथा मैं दे रहा हूं वह उसके सदानीरा होने की भी परिचायक है कि वह पहले किस तरह की थी किन्तु उसकी सहायक नदियों और नालो के आस पास के जंगल कट जाने के कारण अब वह अप्रेल के पहले ही किसी नाले की तरह जल बिहीन हो जाती है। दरअसल बरसात में जब खूब बारिस होती है तो नाले भी नदी की तरह दिखने लगते है। नदी तो धीर गम्भीर होती है पर नाले घमंड में आकर डरावनी सी आवाज निकालते घरघरा उठते है।
कहते है कि एक साल इतनी बारिस हुई कि हमारे पहाड़ से निकला झरना जो कि आगे धुबकटा घाट के पास कुआरी नदी में मिलता है वह अपनी अपार जलराशि देख इतरा उठा और कुआरी से कहने लगा कि
" हे कुआरी नदी जी, हम पानी के मामले में तुम से कम तो है नही? देखो प्रतिदिन तुम्हारे साथ कितना जल प्रवाहित करते है ? तुम अगर बैराड़ के पास से आती हो तो हम भी खौ के पास से कई पहाडियो का पानी समेटते हुए आप से मिलते हैं इसलिए क्यों न इस वर्ष हमारा तुम्हारा विवाह हो जाय?"
कुंवारी उसके प्रस्ताव पर मुस्करा उठी। क्यो कि उसे झरने की औकात मालूम थी कि यह बरसाती नाला है।
उसने कहा "तुम्हारा प्रस्ताव विचारनीय है .पर अभी तो सावन माह चल रहा है . विवाह तो तब होगा जब लग्न खुलेगी ,
तुम जेठ बैसाख तक धैर्य रखो । फिर किसी अच्छी महूर्त में हम दोनों का विवाह हो जायगा।" किन्तु बैसाख में जब विवाह की महूर्त आया उसके पहले पूष में ही झरना टे बोल गया बामसौली के आस पास ही सिमट कर रह गया था।
विवाह की कौन कहे अब वह नदी के सामने मुह दिखाने लायक ही नही बचा था। नदी कुंवारी रह गई।
दूसरी किवदंती यह है कि पालपुर की ढाग में रण सिंह बाबा के पास मगरदै नामक गांव है जहां देवली तेली जाति की एक लड़की स्नान करते समय ज्यादा पानी खर्च करती थी तो उसकी भाभी उसे तंग किया करती थी और कहती थी तुझे तो नहानै के लिए पूरी गंगा चाहिए वह लड़की तंग आकर कुए पर जाती और कुंए की परिक्रमा करके कुएं के पानी ऊपर आने की प्रार्थना करती और पानी ऊपर आ जाता वह खूब नहाती एक दिन उसे ऐसा करते हुए किसी गांव वाले ने देख लिया उसी ‌दिन वह कुएं में डूब कर मर गई वह कुंवारी लड़की थी इसलिए कुंआरी नदी का नाम कुंआरी पड़ गया और उस कुंए से लगातार पानी निकलने लगा और कुंवारी नदी बन गई।
निर्देशक सुजागृति सामाजिक संस्था मोरेना

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गूगल की कहानी बुजुर्गो की जुवानी - ज़ाकिर हुसेन

गूगल एक पवित्र पौधा ही नही महत्त्व पूर्ण औषधि भी माना जाता है इसीलिए प्राचीन काल से आज तक गूगल को कोई काटता नहीं है क्योकि गुग्गल हमारी संस्कृति में रचा वसा है गूगल का उपयोग जन सामान्य पहले से अपने घर में नेह गाड़कर ,रही के सहारे धी निकालने के लिए उपयोग करते थे उनकी ऐसी मान्यता थी कि गूगल की नेह से घी निकालने पर कोई तंत्र मंत्र के जरिए उनके घी को नहीं उड़ा सकता न बाध सकता, वही दूसरा उपयोग स्थानी वैद्य जन इसका उपयोग औषधि के रूप में किया करते थे तीसरा उपयोग गूगल पूजा पाठ अनुष्ठान के लिए होम करने हेतु धूप दीप के लिए किया जाता था व करते है । जानोप्रयोगी गूगल का दुर्भाग्य यह रहा की आज से 35 वर्ष पहले गूगल बहुत अधिक और घनी ,तथा बड़ी संख्या में मिलता था जो करीब 10 से 12 फीट ऊची और अच्छी मोटाई के पौधे जंगल में के रूप में पाए जाते थे किंतु आज से 32 वर्ष पूर्व रूपा सिंह डकैत सजा काटकर बाहर आया तो किसी गुरू नै उसे शिक्षा दी कि आपका बीहड़ क्षेत्र में दबदबा है आप गुर्जर समाज के भी हैं हमें गूगल का गौद निकलवा दीजिए फिफ्टी फिफ्टी परसेंट पर सोदा होगया दूसरी ओर वन विभाग को भी इस कार्य के लिए साथ लिया गया. उन्होंने शयोपुर ,मुरैना भिंड तीनों जिले के बीहड़ क्षेत्र के पेड़ों में केमिकल लगाकर गूगल वृक्ष में चीरा लगवाना शुरू कर दिया केमिकल से एक पेड़ से एक से डेढ़ किलो गौद निकलता तो था किंतु पेड़ केमिकल की बजह से मर जाता था यह कहानी 71 वर्षीय बुजुर्ग किसान हितग्राही श्री द्वारिका सिंह गुर्जर नेताजी को समझ आई उन्होंने इस तकनीक से हो रही गुग्गल की हानि की जानकारी लोगों तक पहुंचाई . अन्य गांव के बुजुर्गों द्वारा बताई गई यह प्रक्रिया करीब 2 ,3 साल चलती रही जिससे बड़े-बड़े पेड़ सब के सब धराशाई हो गए उन्होंने बताया कि एक ट्रक गौद गूगल यहां से ही लेजाया गया फिर हमने पूछा गूगल बची कैसे उन्होंने बताया कि वह जो छोटे पौधे थे एक दो तीन साल के वह पौधे बड़े हो गए , बड़े होकर बीहड़ में ही रहे किंतु स्थानीय लोग उस केमिकल की प्रक्रिया से चीरा लगाना सीख चुके थे वह चीरा लगाने लगे और गूगल लुप्त हौने के कगार पर आ गई इस महत्त्व पूर्ण बिंदु पर मोरेना के समाज सेवी श्री ज़ाकिर हूसेन ने विचार किया विद्वानों से विमर्श कर सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरेना ke माध्यम से कारगर योगदान दिया और इस क्षेत्र में गुग्गल बचाने का योगदान दिया आज गूगल का नाम निशान भी नहीं होता अगर संस्था कार्य न करती.सरकार इस पर प्लान बनाती है परियोजना बनाती है किंतु जमीन पर कुछ नहीं करती उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जाता है यही गूगल का दुर्भाग्य है इसके संरक्षण की आवश्यकता है गरीबों की आजीविका के लिए क्योंकि गूगल गौद ₹2000 किलो है, गुग्गल का संरक्षण और संवर्धन बहुत जरूरी है इसके लगाने के लिए मुरैना जिले में ही 35000 हेक्टेयर जमीन बीहड़ की बेकार पड़ी है उसका उपयोग, हम आज नही जागे तो कल गुग्गल को इतिहास में ही पड़ेंगे.

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सफलता की कहानी कार्यकर्ता की जुबानी " गूगल मेरा जीवन है " - जाकिर हुसैन

मध्य प्रदेश का मुरैना जिला मेरा गृह जिला है यही के ग्राम बामसौली में मेरा जन्म हुआ शिक्षा दीक्षा उपरांत मन में था कि कहीं बाहर जाकर रहूं कार्य करें और अपना जीवन यापन करै परंतु जन्मभूमि को कार्यक्षेत्र बनाने की ललक और सेवा की अपेक्षित भावना से आज मुरैना में ही हूं और जीवन भर रहूंगा कारण कोई परिस्थिति नहीं है कोई दवाब नहीं है कारण सिर्फ एक था कि ऐसी विलुप्त प्रजाति के संरक्षण की चिंता जो हमारे मन को आज से तीन दशक पहले चिंतित किए हुए थी. भावों का मंथन लगाकर निजी स्वार्थ को छोड़कर सिर्फ उसी की चिंता में लगा रहता था।
आज मुरैना की शान कहलाने वाला गूगल पेड़ हमारी चिंता का कारण था विषय था इसी कार्य से हमारा जाना मुरैना से धौलपुर के बीच चंबल नदी के पास बीहड़ में गूगल पेड़ों को देखा व ग्रामीणों से चर्चा हुई जहां पवित्र पावनी चंबल नदी के बीहड़ों में बिखरे पड़े गूगल के वृक्ष उनकी डालियां उड़ते पत्ते मेरे हृदय को स्पर्श कर गए एक ग्रामीण जन किशोरी लाल जी से गूगल के एक वृक्ष की जानकारी ली और पूछा एक पेड़ से गोंद कितना निकलता है गूगल वृक्ष के विषय में उसने बताया और कहा साहब जी अब कुछ नहीं बचा यहां बीहड़ कटाव , मरते हुए गूगल पेड़ , लोगों द्वारा पेड़ के प्रति बिनाशकारी दोहन करने का रवैया सब कुछ नष्ट कर रहा है मैंने वृक्ष के विषय में जानकारी हासिल की कितनी गौद प्राप्त होती है एक पेड़ से कितने की बिक्री हो जाती है और क्या भाव बिकता है ग्रामीणों के बाद वैज्ञानिक मित्रों ,वन विभाग के अधिकारियों और व्यापारियों के परामर्श के बाद जानकारी हासिल की और संकल्प ले डाला की गूगल को संरक्षित व संवर्धन हेतु अपना जीवन लगा देंगे बस इसी क्षेत्र में पौधारोपण का संकल्प को पूर्ण करने हेतु ठान लिया लोगों की प्रेरणा मेरा संकल्प सहयोगियों की भूमिका हमें प्रोत्साहित करती रही और हम इस संकल्प को नियमित करने के लिए सुजागृति समाज सेवी संस्था का निर्माण कर चुके थे अपनी संवेदनशीलता की ताकत को बढ़ाने के लिए पहले हमने संस्था के माध्यम से पंचायती राज, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण पर कार्य किया इन परिस्थितियों से जुड़े लोग हम से जुड़ते गए और हमारे संकल्प को मदद मिलने लगी
सन 2004 में जैव विविधता सदस्य सचिव श्री बीएमएस राठौर जी से संपर्क हुआ उनकी कार्यप्रणाली ने हमें प्रभावित किया उनके प्रशिक्षण एवं जैव विविधता की अवधारणा से हमारे मन मस्तिक पर गहरा प्रभाव पड़ा पीवीआर बनाने का कार्य भी उन्होंने दिया पर्यावरण और जैव विविधता हमारे लिए महत्वपूर्ण कार्य बनकर सामने आया जैवविविधता की बैठक सैमीनार व वर्कशॉप अटेंड कर हमें दो मूल समस्याओं का समाधान ढूंढने की और चिंतन आया एक बीहड़ के कटाव को रोका जाए दूसरा गूगल का विनाश रोकने हेतु वृक्षारोपण किया जाए चूंकि हमारा गांव बीहड़ों में है हमारा पालन-पोषन बीहड़ों में हुआ है बीहड़ों से हम भलीभांति परिचित थे वहां के इलाके वहां की परिस्थितियां इसलिए हमारे लिए यह काम आसान हुआ मुरैना जिले की यह दोनों ही समस्याएं हमारे लिए महत्वपूर्ण कार्य बनी हमने 2004 में दोनों बिंदुओं पर कार्य किया आज तक यह ध्येय हमारे जीवन का सुखद काल है।
इसके बाद सेंटर फॉर एनवायरमेंट एजुकेशन दिल्ली के माध्यम से हमें अपने उद्देश पर कार्य करने के लिए मदद मिली सहयोग के साथ ही उनसे मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ बीहड़ और उपजाऊ भूमि के बीच डौर बंदी कार्य किया गया जिससे भी 20 वर्ष तक बीहड़ आगे नहीं बड़े तथा 10000 गुगल पौधों का वृक्षारोपण किया गया संस्था का संकल्प था कि ज्यादा से ज्यादा लोग गूगल की नर्सरीया लगाए तथा वृक्षारोपण करें इसके लिए हमने ग्रामीणों को प्रशिक्षण दिए और हमारे अनुभव का लाभ किसानों को मिला उन्होंने नर्सरी बनाइ सीखा कैसी नर्सरिया लगाई जाती है कैसे वृक्षारोपण किया जाता है पेड़ में चीरा कैसे लगाया जाए गौद कैसे निकाले स्वछता पूर्वक कैसे भंडारण करें यह किसानों को समझाया इस कार्य में जैव विविधता बोर्ड ,वन विभाग ,एन एम पी बी न्यू दिल्ली, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर, आरसीएफसी जबलपुर, जिला पंचायत, बीएमसी, जेएफएमसी और स्वयं सहायता समूह के लोगों से हमें बहुत सहयोग प्राप्त हुआ और सहयोग मिलता रहेगा हम अपनी सफलता इसमें भी मानते हैं कि आज 500 हितग्राही किसानों का जीवन यापन औषधि पौधों से होने लगा है आज हमारे द्वारा गूगल सतावर को विभिन्न स्थानों जैसे दतिया, शौपुर, जबलपुर, आगरा, दिल्ली ,मदुरई आदि स्थानों पर गूगल के100000 पौधों का रोपड़ 25 गामौमै कराया तथा100000 पौधों की बिक्री की इसका विस्तार किया और वहां किसान सफलतापूर्वक उनका बिनाश हीन विदोहन करने लगे हैं यह सुखद काल एवं अनुभव है। चूंकि गूगल में से आय 6 वर्ष बाद प्राप्त होती है इसलिए उसके साथ क्रॉस फसल के रूप में सतावर अश्वगंधा बीच-बीच में रोपित करने से किसानों को लंबे समय तक आय प्राप्ति के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता है
गूगल मुरैना की आन बान शान ही नहीं बनी एक मॉडल के रूप में उभरी है देश की नौ सौ कंपनियों की डिमांड गूगल है आज गूगल की मुरैना जिले से कुछ हद तक पूर्ति की जा रही है इसको बड़े पैमाने पर करने की आवश्यकता है क्योंकि इसकी डिमांड अनुसार पैदावार बहुत कम है आज इसकी डिमांड 3000 टन है जबकि पूरे भारत में 10 टन गूगल पैदा होता है इसलिए अरबों खरबों रुपए से हमें पाकिस्तान से आयात करना पड़ता है जबकि मुरैना जिले में ही 35000 हेक्टेयर भूमि जो बीहड़ों में बेकार पड़ी हुई है उसमें गूगल लगा दी जाए तो पूरे देश की मांग पूर्ति की जा सकती है साथ ही गूगल प्रजाति का संरक्षण एवं संवर्धन हो सकता है 35000 हेक्टेयर भूमि किसानों की बीहड़ में परिवर्तित होने से वह भूमिहीन हुए हैं उनके लिए वैकल्पिक आजीविका का साधन बन सकती है पर्यावरणीय लाभ होगा बीहड़ कटाव भी इससे रुकता है क्योंकि यह एक अच्छा सॉईल बाडर पौधा है उपरोक्त मुद्दे ही संस्था का उद्देश्य है इसी उद्देश्य को पूर्ण करने में तन्मयता से हम लोग लगे हुए हैं । इस कार्य के लिए हमें विभिन्न संस्थाओं के द्वारा पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं माननीय सीएम साहब द्वारा भी हमें पुरस्कृत किया गया है ।श्री विनोद मिश्र का गीत। वृक्ष न खाते अपना फल, नदियां ना पीती अपना जल। हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें इस परोपकारी गुगल का संरक्षण कर जनहित में कार्य करना होगा शासन और प्रशासन व संस्थाओं को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है तभी मुरेना की आन बान शान गूगल हर जगह लहरायेगा...
जय गूगल जय जंगल जय हिंद।

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गीत -गूगल वृक्ष
जिसने हमें दीया ही दिया उन्हें मिटाने क्यों
जंगल में मंगल जो करते उन्हें
मिटाएं क्यों
चंबल के बीहड़ों के आंगन पलें फूलते गूगल पावन
जेठ दोपरिया तप तप कर वो मुस्काते जब आए सावन
मुस्काते लहराते हंसते
उन्हें मिटायें क्यों
वृक्ष न खाते अपना फल
नदिया ना पिए अपना जल
सेवा त्याग की इस मिशाल सा अपना भी हो मन निर्मल
जीव जीव में खुद को देखो
ईश्या बढ़ाएं क्यों
वेद्य् हकीम ऋषियों ने माना
गूगल दवा सहायक
आम्र वात मोटापन आदि
मूत्र रोग में लायक
और अनेक नेक यह करता
इसे हटाए क्यों
बने स्वामी हम इस बिरछा के
अपना फर्ज निभाएं
बाग बगीचा खेत और आंगन
गूगल वृक्ष लगाएं
जिससे नाता पुरखों जैसा
उसे मिटायें क्यों..
जंगल में मंगल जो करते हैं उन्हें मिटाएं क्यों
जिसने हमें दिया ही दिया उन्हें मिटाएं क्यों..

गूगल की कहानी बुजुर्गो की जुवानी - ज़ाकिर हुसेन
गूगल एक पवित्र पौधा ही नही महत्त्व पूर्ण औषधि भी माना जाता है इसीलिए प्राचीन काल से आज तक गूगल को कोई काटता नहीं है क्योकि गुग्गल हमारी संस्कृति में रचा वसा है गूगल का उपयोग जन सामान्य पहले से अपने घर में नेह गाड़कर ,रही के सहारे धी निकालने के लिए उपयोग करते थे उनकी ऐसी मान्यता थी कि गूगल की नेह से घी निकालने पर कोई तंत्र मंत्र के जरिए उनके घी को नहीं उड़ा सकता न बाध सकता, वही दूसरा उपयोग स्थानी वैद्य जन इसका उपयोग औषधि के रूप में किया करते थे तीसरा उपयोग गूगल पूजा पाठ अनुष्ठान के लिए होम करने हेतु धूप दीप के लिए किया जाता था व करते है । जानोप्रयोगी गूगल का दुर्भाग्य यह रहा की आज से 35 वर्ष पहले गूगल बहुत अधिक और घनी ,तथा बड़ी संख्या में मिलता था जो करीब 10 से 12 फीट ऊची और अच्छी मोटाई के पौधे जंगल में के रूप में पाए जाते थे किंतु आज से 32 वर्ष पूर्व रूपा सिंह डकैत सजा काटकर बाहर आया तो किसी गुरू नै उसे शिक्षा दी कि आपका बीहड़ क्षेत्र में दबदबा है आप गुर्जर समाज के भी हैं हमें गूगल का गौद निकलवा दीजिए फिफ्टी फिफ्टी परसेंट पर सोदा होगया दूसरी ओर वन विभाग को भी इस कार्य के लिए साथ लिया गया. उन्होंने शयोपुर ,मुरैना भिंड तीनों जिले के बीहड़ क्षेत्र के पेड़ों में केमिकल लगाकर गूगल वृक्ष में चीरा लगवाना शुरू कर दिया केमिकल से एक पेड़ से एक से डेढ़ किलो गौद निकलता तो था किंतु पेड़ केमिकल की बजह से मर जाता था यह कहानी 71 वर्षीय बुजुर्ग किसान हितग्राही श्री द्वारिका सिंह गुर्जर नेताजी को समझ आई उन्होंने इस तकनीक से हो रही गुग्गल की हानि की जानकारी लोगों तक पहुंचाई . अन्य गांव के बुजुर्गों द्वारा बताई गई यह प्रक्रिया करीब 2 ,3 साल चलती रही जिससे बड़े-बड़े पेड़ सब के सब धराशाई हो गए उन्होंने बताया कि एक ट्रक गौद गूगल यहां से ही लेजाया गया फिर हमने पूछा गूगल बची कैसे उन्होंने बताया कि वह जो छोटे पौधे थे एक दो तीन साल के वह पौधे बड़े हो गए , बड़े होकर बीहड़ में ही रहे किंतु स्थानीय लोग उस केमिकल की प्रक्रिया से चीरा लगाना सीख चुके थे वह चीरा लगाने लगे और गूगल लुप्त हौने के कगार पर आ गई इस महत्त्व पूर्ण बिंदु पर मोरेना के समाज सेवी श्री ज़ाकिर हूसेन ने विचार किया विद्वानों से विमर्श कर सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरेना ke माध्यम से कारगर योगदान दिया और इस क्षेत्र में गुग्गल बचाने का योगदान दिया आज गूगल का नाम निशान भी नहीं होता अगर संस्था कार्य न करती.सरकार इस पर प्लान बनाती है परियोजना बनाती है किंतु जमीन पर कुछ नहीं करती उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जाता है यही गूगल का दुर्भाग्य है इसके संरक्षण की आवश्यकता है गरीबों की आजीविका के लिए क्योंकि गूगल गौद ₹2000 किलो है, गुग्गल का संरक्षण और संवर्धन बहुत जरूरी है इसके लगाने के लिए मुरैना जिले में ही 35000 हेक्टेयर जमीन बीहड़ की बेकार पड़ी है उसका उपयोग, हम आज नही जागे तो कल गुग्गल को इतिहास में ही पड़ेंगे.

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एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम।
औषधीय उपज की मांग शुद्धता से बढ़ती है यह कहा कृष्ण गोपाल क्यूसीआई दिल्ली से पधारे हुए वैज्ञानिक ने तथा गूगल का संरक्षण ही हमारी प्रतिबद्धता होनी चाहिए विषय विशेषज्ञ डॉक्टर विनोद मिश्रा द्वारा बताया गया।

सुजागृति समाजसेवी संस्था मुरैना के द्वारा भारतीय गुणवत्ता परिषद नई दिल्ली के सौजन्य से आयोजन , किया गया इसमें मुख्य रूप से गूगल गोंद की गुणवत्ता कैसे बढ़ाई जाए और गूगल के पेड़ को विनाश से बचाने के लिए सही तरीके से चीरा कैसे लगाएं विषय पर प्रशिक्षण धर्म इन होटल मुरैना में आयोजित किया गया किसान लघु वनोपज से कैसे ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त करें यह जानकारी भी दी गई संस्था अध्यक्ष सु जागृति समाज सेवी संस्था से जाकिर हुसैन द्वारा बताया गया कि हमारे चंबल अंचल में सबसे उच्च उच्च गुणवत्ता का गूगल पाया जाता है उसके लगाने के लिए वीहडौ में रेवेन्यू की किसानों की व विभाग की पर्याप्त भूमि है किंतु शासन और प्रशासन ठीक से ध्यान दे दे तो अरबों खरबों रुपए जो विदेश से गूगल हमें मगाना पड़ता है वह नहीं मंगाना पड़ेगा उसके लिए मॉडल के रूप में सुजागृति समाज सेवी संस्था द्वारा गूगल की नर्सरीया गूगल का प्लांटेशन गूगल से गौद कैसे निकाले यह सारी व्यवस्थाएं सिस्टम बनाया हुआ है उसे फॉलो करने की आवश्यकता है स्थानीय प्रजाति से गरीबों की आजीविका तो सुनिश्चित होगी ही साथी बेकार पड़ी हुई भूमि का उपयोग होगा पर्यावरणीय लाभ होगा इस पर विचार करने की आवश्यकता है इस अवसर पर कला मंडल द्वारा कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया इस कार्यशाला में 65 हितग्राहियों ने भागीदारी की इस प्रशिक्षण में क्वालिटी कंट्रोल ऑफ़ इंडिया से पधारे अरुण जी द्वारा बताया गया कि किसानों का एक फेडरेशन बनाया जाए जिससे गूगल का कल्टीवेशन का कार्य और विस्तृत रूप से यहां किया जा सकता है उसके लिए हम यहां प्रशिक्षण ट्रेनिंग बराबर करते रहेंगे ऐसा उनके द्वारा आश्वासन दिया गया।

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मुरैना की गुगल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए सम्मान
लोकल को ग्लोबल तक ले जाने और विश्व बाज़ार से परिचय, पहुँच और पहचान करने के लिये जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय ने एक राष्ट्रीय समवाद १७ः१३ः२०२१ कराया इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम मध्य प्रदेश के किसानो को exporter बनने के लिए मार्ग प्रशस्त करना था। श्री विनोद विद्यार्थी महा प्रबंधक APEDA नई दिल्ली मुख्य अतिथि रहें और अध्यक्षता प्रफ़ेसर प्रदीप बिसेन कुलपति JNKVV थे सौ से अधिक वैज्ञानिक, startups, FPOs, चुनिंदा कृषक और उध्यमि कि उपस्थिति में मुरैना जिले के श्री ज़ाकिर हूसेन अध्यक्ष सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरैना को गुग्गुल पौध संरक्षण और संवर्धन तथा गूगल नर्सरिया तैयार कराने व गूगल का विनाशहीन विदोहन हितग्राही किसानों को समझाने तथा गूगल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए यह सम्मान मिला इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए हुसैन ने कहा 35000 हेक्टेयर जमीन जहां बीहड़ है बेकार पड़ी है उसमें प्रभु प्रदत विश्व का सबसे गुणकारी गूगल का पौधा जिसके लिए यहां की मिट्टी व मौसम सबसे उपयुक्त मुफीद है वह यही सबसे अच्छा फलता फूलता है यह इस बेकार पड़ी भूमि में लगा दिया जाए तो गरीब किसानों की आजीविका का साधन बनेगी साथ ही बीहड़ हरे भरे होंगे तथा नोसौ कंपनी कि जो मांग है वह पूरी होगी अरबों खरबों रुपए जो सिंध पाकिस्तान से हमें गूगल आयात करना पड़ता है वह नहीं करना पड़ेगा यह विचार व्यक्त किये और ऐशान अली को गुग्गुल उधयोग के लिये किए जा रहे उल्लेखनीय कार्य की प्रशंसा करते हुए प्रशस्तिय पत्र से सम्मानित किया गया।

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केस स्टडी - सुजागृति संस्था ने किया औषधि के प्रति ग्रामीणों को सक्रिय
मुरेना l गुग्गल ओर शताबार के संरक्षण में वर्षो से लगी मुरेना की सामाजिक संस्था सुजागृति अब जिले के दूरस्थ क्षेत्रों के किसानो को औषधि की खेती करने और उनके बाजार व्यवस्था हेतु निरंतर कार्य कर रही हैं ऐसा ही एक गाँव जहाँ के किसान अहसान अली खान पुत्र श्री बफाती खान गांव जाबरोल से हैं यह गाँव चंबल के बीहड़ों में है तहसील सबलगढ़ से मुरैना से लगभग 90 किलोमीटर दूरी पर है शिक्षा 10+2 तथा i. t. ;i. ट्रेड फिटर किसान अहसान अली ग्राम जाबरोल के जनवरी 2005 से 2010 तक सरपंच भी रहे हैं तथा वर्तमान में जैव विविधता प्रबंधन समिति जाबरोल के अध्यक्ष हैं चूंकि पौधा के संरक्षण हेतु हमेशा से ही लगाव होने के कारण 2006 में ग्राम पंचायत में वृक्षारोपण कार्य किया, इस कार्य मै सुजागृति समाज सेवी संस्था के अध्यक्ष श्री जाकिर हुसैन ने मार्गदर्शन दिया . उन्होंने वृक्षारोपण का भ्रमण किया साथ ही उनके द्वारा गुगल के पौधे के संरक्षण तथा औषधियों की जानकारी दी गई .उनके द्वारा बताया गया कि राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड न्यू दिल्ली के सहयोग से गूगल एवं जैव विविधता संरक्षण तथा आजीविका परियोजना के तहत औषधिय पौधा का संरक्षण और संवर्धन करना है साथ ही साथ उनके लिए बाजार व्यवस्था भी हितग्राही किसानों को मुहैया हो, क्योंकि औषधि पौधा की खेती के बाद उन्हें क्रय कौन करेगा इसके लिए उन्होंने बताया कि सुजागृति संस्था का डाबर कंपनी गाजियाबाद के साथ एमओ यू है आप एक कलेक्शन सेंटर बनाइए उसके लिए हमारी संस्था हर संभव मदद करेगी और मेरे , संस्था के सहयोग से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा 2013 में गुगल के पौधों की नर्सरी तैयार की गई और निरंतर की जा रही है ...तथा उसी समय से लेकर आज दिनांक तक जाकिर हुसैन द्वारा मेरे गांव के मजदूरों, किसानों को गूगल गोंद निकालना, प्लांटेशन करना नर्सरी तैयार करने आदि तथा सतावर हेतु अनेको बार ट्रेनिंग दी गई! 2019 मैं कलेक्शन सेंटर खोला इससे मेरे गांव और आसपास के गांवों के समूह तथा कृषक मजदूरों को औषधी विक्रय करने हेतु आसानी हुई है और हितग्राही किसानों का जीवन स्तर में सुधार हुआ है .गाँव की फर्म द्वारा 2021 में गिलोय पाउडर, अश्वगंधा पाउडर, आंवला पाउडर आदि कार्य करने के उद्देश्य से fssai पंजीयन संख्या 21421690000518 एवं iso certificate no : 20EQBI19 है! साथ ही सन् 2020 में जाकिर हुसैन तथा rcfc- jabalpur द्वारा चंबल के बीहड़ों में अश्वगंधा की खेती करने हेतु कहा गया साथ ही मुझे अश्वगंधा का बीज भी दिया तब मेरे द्वारा पहली बार 2 बीघा भूमि में अश्वगंधा की खेती की गई जिसका बहुत ही अच्छा मुनाफा हुआ अश्वगंधा का बीज ही मेरे द्वारा ₹25000₹ में विक्रय किया गया है और हमारे चंबल संभाग में अश्वगंधा की खेती करना भी प्रारंभ हो गया है अश्वगंधा की जड़ अभी मेरे पास उपलब्ध है जिसका मेरे द्वारा पाउडर भी बनाया गया है इस कलेक्शन सेंटर के माध्यम से हमारे द्वारा किसानों का कच्चा माल उचित रेट पर लिया जाता है तथा कंपनियों को दिया जाता है जिससे पूरा का पूरा लाभ हितग्राही किसानों को प्राप्त हो रहा है जिससे उनकी माली हालत में सुधार आया है आज लोग अनिवार्य आवश्यकता की चीजों पर पैसा खर्च करने लगे हैं शिक्षा पर स्वास्थ्य पर , कलेक्शन सेंटर के माध्यम से 100000 पौधे गूगल के तथा 50 टन अग्निमथ, 1 टन गूगल गौद और कई अन्य औषधि का विक्रय किया जा चुका है जिससे किसानों का जीवन स्तर मैं सुधार हुआ है साथी साथ उनको विक्रय हेतु उचित स्थान प्राप्त हुआ है मेरे द्वारा कई बार ऑनलाइन आयुष मंत्रालय भारत सरकार के प्रशिक्षण कार्यों में भी भाग लिया है , हमारे द्वारा सुजागृति समाज सेवी संस्था के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय वन मेला भोपाल मैं ब ग्रीन हाट दिल्ली में भी प्रतिवर्ष दुकान लगाई जाती है मेरी फर्म हरियाली ट्रेडर्स को icar - iinrg ranchi तथा jnkvv जबलपुर द्वारा guggul गम तथा अन्य औषधियों की उचित क्वालिटी उपलब्ध कराने हेतु दिनांक 02/11/2021 को प्रमाण पत्र द्वारा सम्मानित भी किया गया है इसके लिए मैं अपनी तरफ से सुजागृति समाज सेवी संस्था तथा राष्ट्रीय पादप बोर्ड आयूष मंत्रालय भारत सरकार तथा तकनीकी सहयोग हेतु आर सी एफ सी जबलपुर एवं जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर का धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ तथा आशा करता हूँ कि मुझे भविष्य में भी इसी प्रकार का सहयोग एवं मार्गदर्शन देकर मेरे इस कार्य को अंतिम मुकाम तक ले जाने में मेरे साथ रहेंगे।

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सफलता की कहानी हितग्राही किसान की जवानी
गुगल,शताबर और औषधि पौध लगाकर कर बहुत खुश है बामसोली के किसान मुरेना l यह एक सफलता की कहानी है दूरस्थ ग्राम जिला मुरैना से 90 किलोमीटर दूर के धीरेन्द्र सिंह जादौन पुत्र स्व श्री रामपाल सिंह जादौन ग्राम बामसौली तहसील सबलगढ जिला मुरैना ,मध्यप्रदेश ने असिंचित् एव्ं वंजर भूमि में सोना उगाया कहावत को चरितार्थ किया हैं उनके बताये अनुसार कि मैं ऐसी खेती करू जिसमे पानी बहुत कम लगे ,बार बार की मेहनत भी कम लगे क्योंकि मेरे खेत के पास पानी की उपलब्धता बहुत ज्यादा नही है ,साथ ही मजदूर भी आसानी से नही मिलते ।लेकिन मन मे यह भी था कि खेती फायदे का सौदा भी बने।इसी बीच इस बारे में मेरी चर्चा सुजागृति समाज सेवी संस्था के श्री ज़ाकिर हुसैन से हुई ।उन्होंने मार्ग दर्शन दिया कि यदि आप थोड़ा धैर्य रखें और मेरी बात पर भरोसा रखें तो गुग्गल और सतावर का रोपड़ अपने खेत मे कर इस जमीन के भाग्य बदल सकते हैं ।यह एक ऐसी प्रजाति है जिसे संरक्षण की जरूरत है।गुग्गल में 5,6 साल बाद गोंद आना शुरू होगा और उसकी कीमत इतनी होती है कि आपका 5 साल का इंतजार करना भी आपको फायदे का सौदा ही साबित होगा।साथ ही शतावर की फसल से 2 साल बाद ही आपको आमदनी शुरू हो जायेगी।इसके अतिरिक्त श्री ज़ाकिर हुसैन ने बताया कि गुग्गल और शतावर के बीच मे जो जगह है उसमें अश्वगंधा भी लगा ले तो उस से 6 माह में ही आपकी आमदनी शुरू हो जाएगी।उन्होंने कहा कि आपको बस थोड़ा धैर्यऔर थोड़ा विश्वास रखना होगा तथा अपने खेत की सुरक्षा के लिए फेंसिंग और निगरानी की व्यवस्था करना होगी ताकि गुग्गल,शतावर और अश्वगंधा को जंगली जानवरों के नुकसान से बचाया जा सके। श्री ज़ाकिर हुसैन ने कहा हमारी संस्था राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के सहयोग से गूगल और जैव विविधता संरक्षण आजीविका परियोजना के तहत आप के खेत में गूगल सताबर लगाने हेतु उन्होंने बताया कि ये सब पौधे हम उपलब्ध कराएंगे और इन से होने वाले उत्पादों के विक्रय में भी सहयोग करेंगे।ये विचार धीरेंद् सिंह को पसंद आया और उन्होंने अपने ग्राम बामसौली के बालाजी मंदिर के पास अपनी एक हेक्टेयर जमीन में गुग्गल लगाने का निर्णय जून 2021 में लिया। उसके बाद मई 2021में शतावर और नवंबर 2021 में अश्वगंधा भी लगाई।इनके लगाने के बाद मात्र एक बार पानी दिया ,उसके बाद से ये सब पौधे आज निकल आये है तथा अच्छी स्थिति में है .इस कम पानी वाले इलाके में आसपास के बहुत सारे किसान औषधीय खेती करने के लिए लालाइत है तथा संपर्क बनाए हुए हैं निश्चित रूप से इसका सकारात्मक परिणाम देख कर औषधीय पौधों की खेती करेंगे जिससे लुप्त होती हुई प्रजाति तो बचेगी ही साथ ही साथ कंपनियों की डिमांड भी पूरी होगी तथा किसानों की आय तीन से चार गुनी बढ़ जाएगी क्योंकि आज के समय में गूगल गौद का भाव ₹2000 / ,शतावर ₹300 किलो ,अश्वगंधा की जड़ ₹700 किलो चल रहा है 10,00000 / की आय होगी साथ ही साथ पर्यावरणीय लाभ होगा क्योंकि यह फसल में जैविक तरीके से पैदा की जा रही हैं जिससे खेत में कीटनाशक दवा व रासायनिक खाद डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी जिससे जमीन भी अच्छी रहेगी धीरेंद्र सिंह की सफलता मै सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरेना, राष्ट्रीय पादप बोर्ड ,आयूष मंत्रालय भारत सरकार तथा तकनीकी सहयोग के लिए आर सी एफ सी जबलपुर का महत्त्व पूर्ण सहयोग व मार्गदर्शन रहा.
हितग्राही किसान धीरेंद्र सिंह जादौन

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मुरैना की गुगल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए सम्मान
लोकल को ग्लोबल तक ले जाने और विश्व बाज़ार से परिचय, पहुँच और पहचान करने के लिये जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय ने एक राष्ट्रीय समवाद १७ः१३ः२०२१ कराया इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम मध्य प्रदेश के किसानो को exporter बनने के लिए मार्ग प्रशस्त करना था। श्री विनोद विद्यार्थी महा प्रबंधक APEDA नई दिल्ली मुख्य अतिथि रहें और अध्यक्षता प्रफ़ेसर प्रदीप बिसेन कुलपति JNKVV थे सौ से अधिक वैज्ञानिक, startups,FPOs, चुनिंदा कृषक और उध्यमि कि उपस्थिति में मुरैना जिले के श्री ज़ाकिर हूसेन अध्यक्ष सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरैना को गुग्गुल पौध संरक्षण और संवर्धन तथा गूगल नर्सरिया तैयार कराने व गूगल का विनाशहीन विदोहन हितग्राही किसानों को समझाने तथा गूगल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए यह सम्मान मिला इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए हुसैन ने कहा 35000 हेक्टेयर जमीन जहां बीहड़ है बेकार पड़ी है उसमें प्रभु प्रदत विश्व का सबसे गुणकारी गूगल का पौधा जिसके लिए यहां की मिट्टी व मौसम सबसे उपयुक्त मुफीद है वह यही सबसे अच्छा फलता फूलता है यह इस बेकार पड़ी भूमि में लगा दिया जाए तो गरीब किसानों की आजीविका का साधन बनेगी साथ ही बीहड़ हरे भरे होंगे तथा नोसौ कंपनी कि जो मांग है वह पूरी होगी अरबों खरबों रुपए जो सिंध पाकिस्तान से हमें गूगल आयात करना पड़ता है वह नहीं करना पड़ेगा यह विचार व्यक्त किये और ऐशान अली को गुग्गुल उधयोग के लिये किए जा रहे उल्लेखनीय कार्य की प्रशंसा करते हुए प्रशस्तिय पत्र से सम्मानित किया गया।

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ग्राम पिपरई के विद्यालय में आयुष आपके द्वार कार्यक्रम, में पौधा वितरण एवं पौधारोपण
संवाददाता महेश कुलश्रेष्ठ
मुरैना- पिपरई आज दिनांक 26.10.2021 को ग्राम पिपरई के शासकीय माध्यमिक विद्यालय मेंआयुष आपके द्वार कार्यक्रम के अंतर्गत पौधा वितरण एवं पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरैना के द्वारा एनएमपीबी के सहयोग से किया गया इस कार्यक्रम में विद्यालय के शिक्षक ग्रामीण जनो द्वारा भागीदारी की गई आज इस कार्यक्रम में पौधारोपण भी किया गया तथा पूर्व में लगाए गए पौधों की सफाई की गई इस अवसर पर संस्था द्वारा 100 पौधों का वितरण किया गया एवं बीहड़ क्षेत्र में गूगल शतावर का रोपण किया गया सुरक्षा की दृष्टि से पौधों की तार फेंसिंग की गई, जो खराब थी उस फेंसिंग को ठीक किया गया पौधारोपण की सुरक्षा की जिम्मेदारी ग्रामीणों ने व शिक्षकों ने ली इस अवसर पर संस्था के अध्यक्ष जाकिर हुसैन द्वारा लोगों को पेड़ों के संरक्षण एवं संवर्धन के महत्व को समझाया गया। ग्रामीणों के रूप में श्री बेताल सिंह भभूति सिग रामनारायण बहादुर सिंह द्वारका सिग स्कूल के शिक्षक शंगीता मैम, जीनत आदि लोगों द्वारा भागीदारी की गई। जैव विविधता की संबद्धता से ही मन प्रफुल्लित आनंदित होता है किंतु आज की निजी स्वार्थ भरी जिंदगी के कारण जंगल सुकड़ते जा रहे हैं व नदी तालाब आरंड पर्वत घाटी वन मैदान संकुचित होते जा रहे हैं हमें ईमानदारी के साथ आने वाली पीढ़ी के लिए न्याय करने की आवश्यकता है और इसे कागजों से निकाल कर जमीन पर रचनात्मक रूप देने की आवश्यकता है तभी जैव विविधता का संरक्षण और संवर्धन होगा। आज जैव विविधता कार्यक्रम को कागजों से हट कर मोके पर कार्य रुप में परिणित करने की महती आवश्यकता है | तभी हमारी आने बाली पीढी चेन की सांस ले सकेगी |

बीहड़ों का सुधार पारंपरिक तरीके से एवं नई तकनीकी के द्वारा स्थानीय जैव विविधता का संरक्षण एवं संवर्धन तथा गरीबों की आजीविका सुनिश्चित करने के लिए सुजागृति समाजसेवी संस्था मुरैना द्वारा बीहड़ कटाव को रोकने के लिए तथा उसे आगे न बढ़ने देने के उद्देश्य से डौर बंदी ,स्टॉप डेम और जल निकास नालियों का निर्माण कराया गया है साथी साथ गरीबों को तुरंत लाभ हेतु गूगल, सतावर, करील, चमैनी लगाकर उन्हें आजीविका के स्रोत पैदा किए आज इस परियोजना से करीब 500 परिवार की रोजी रोटी चल रही है। यह कार्य ग्राम जावरौल, बामसौली, देवरी, बेरखेड़ा, पहाड़ी बागचीनी मैं चल रहा है ग्राम जाबरौल में प्रतिवर्ष हम लोग गूगल नर्सरी तैयार करते हैं साथी साथ जैव विविधता प्रबंधन समितियों को क्रियान्वित करना उनकी क्षमता वृद्धि करना उन के माध्यम से संरक्षण संवर्धन के कार्य में सहयोग लेना तथा पीवीआर निर्माण कार्य कराया गया है। जिससे इन गांवों की जैव विविधता पल्लवित हुई है विकसित हुई है अधिकाधिक सुंदर दिखने लगी है यह कार्य नेशनल मेडिसन प्लांट बोर्ड दिल्ली के सहयोग से किया जा रहा है पहले यह कार्य सीसीई के माध्यम से किया गया था यह कार्य मॉडल के रूप में हर पंचायत में किया जाए तो निश्चित रूप से लोगों की आजीविका शुनिशिच होगी जैव विविधता का संरक्षण और संवर्धन होगा पर्यावरणीय लाभ होगा अनुपयोगी जमीन का उपयोग होगा। माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी का लोकल सो फोकल कार्य होगा तथा विभिन्न कंपनियों की औषधि मांग पूरी होगी।

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वृक्ष दान महादान
आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत आयुष आपके द्वार के तहत सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरैना एवं आरसीएफसी जबलपुर के संयुक्त तत्वाधान में औषधि पौधा वितरण कार्यक्रम न्यू हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में राम प्रसाद बिस्मिल चौराहे पर आयोजित किया गया जिसमें गूगल, सतावर, अश्वगंधा कालमेघ, ब्राह्मी,तुलसी सर्पगंधा करंचआदि के पौधे 1000 पौधों का वितरण किया गया जिससे औषधिय पौधे घर-घर लगाए जा सके तथा औषधियों का लाभ जन समुदाय ले सके इन पौधों को भी लोग पहचान सकै इसी उद्देश्य को लेकर नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड दिल्ली द्वारा पूरे देश में एक अभियान के रूप में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है इस कार्यक्रम में निशुल्क पौधा वितरण जन समुदाय को किये जा रहा है इसमें लोगों के मोबाइल नंबर और नाम लिए गए हैं वह जब अपने घरों मैं गमलों में पौधे लगाएंगे उस समय पौधे के साथ सेल्फी लेंगे और हमें डालेंगे इस तरीके से फॉलोअप कार्यक्रम भी होगा इस कार्यक्रम में लोगों ने बड़ी रूचि ली है 45 वार्ड के पार्षद एव नगर निगम के उपसभापति श्री केशव सिंह तोमर मय फैमिली के उपस्थित हुए तथा उन्होंने गूगल कलमेघ के पौधे लिए सुजागृति संस्था अध्यक्ष द्वारा लोगों को पौधों के विषय में उनके नाम तथा वह किस उपयोग में आते हैं वह बताया गया आरसीएफसी जबलपुर से श्री प्रतीक जैन ने भी इस कार्यक्रम में भागीदारी की 3 सितंबर 2021 को केवीके मुरैना में पूरे मुरैना शहर के लिए औषधि पौधों का वितरण किया जाएगा।

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वृक्ष दान महादान
आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत आयुष आपके द्वार के तहत सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरैना एवं आरसीएफसी जबलपुर के संयुक्त तत्वाधान में औषधि पौधा वितरण कार्यक्रम न्यू हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में राम प्रसाद बिस्मिल चौराहे पर आयोजित किया गया जिसमें गूगल, सतावर, अश्वगंधा कालमेघ, ब्राह्मी,तुलसी सर्पगंधा करंचआदि के पौधे 1000 पौधों का वितरण किया गया जिससे औषधिय पौधे घर-घर लगाए जा सके तथा औषधियों का लाभ जन समुदाय ले सके इन पौधों को भी लोग पहचान सकै इसी उद्देश्य को लेकर नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड दिल्ली द्वारा पूरे देश में एक अभियान के रूप में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है इस कार्यक्रम में निशुल्क पौधा वितरण जन समुदाय को किये जा रहा है इसमें लोगों के मोबाइल नंबर और नाम लिए गए हैं वह जब अपने घरों मैं गमलों में पौधे लगाएंगे उस समय पौधे के साथ सेल्फी लेंगे और हमें डालेंगे इस तरीके से फॉलोअप कार्यक्रम भी होगा इस कार्यक्रम में लोगों ने बड़ी रूचि ली है 45 वार्ड के पार्षद एव नगर निगम के उपसभापति श्री केशव सिंह तोमर मय फैमिली के उपस्थित हुए तथा उन्होंने गूगल कलमेघ के पौधे लिए सुजागृति संस्था अध्यक्ष द्वारा लोगों को पौधों के विषय में उनके नाम तथा वह किस उपयोग में आते हैं वह बताया गया आरसीएफसी जबलपुर से श्री प्रतीक जैन ने भी इस कार्यक्रम में भागीदारी की 3 सितंबर 2021 को केवीके मुरैना में पूरे मुरैना शहर के लिए औषधि पौधों का वितरण किया जाएगा।

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आज ग्राम जाबलौर में छेत्रीय सह सुविधा केंद्र मध्य प्रदेश जबलपुर आरसीएफसी की ओर से मनीष गोस्वामी सलाहकार और पंकज सैनी साहब का आगमन हुआ उनके द्वारा हितग्राही किसानों के साथ बैठक की तथा बीहड क्षेत्र का भ्रमण भी किया गया सुजागृति समाज सेवी संस्था द्वारा लगाए गए गूगल सतावर करील चमेली के पेड़ों का अवलोकन भी किया गया साथ ही जावरोल के पूर्व सरपंच श्री एहसान अली खान को अश्वगंधा की खेती के लिए मोटिवेट किया गया और वह अश्वगंधा लगाने के लिए तैयार हो गए तथा 4 किलो अश्वगंधा का बीज मनीष जी द्वारा एहसान अली को दिया गया इसकी खेती के रिजल्ट को देखने बाद अन्य किसान औषधि पौधों के लिए लालायित होंगे तथा इसे बीहड में आजीविका बढ़ाने का नया साधन हो जाएगा राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित आरपीएससी ब सुजागृति की यह मंशा है कि बीहड़ क्षेत्र में तथा खेती में औषधि पौधों का रोपण किया जाए जिससे किसानों की आय दोगुनी से भी ज्यादा हो जाएगी इसलिए अश्वगंधा और पुनर्नवा तथा क्षेत्र औषधि पौधों की संभावना तलाश कर उन्हें रोपित कर फसल अर्जित करके आजीविका के स्रोत यहां पैदा हो जिससे जो लोग भूमि हींनऔर बेघर हो गए हैं बीहड़ के कारण उनके लिए आजीविका का साधन बनाना उद्देश्य है

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आज दिनांक 17 10 2020 को सीनियर आईफ़एस माननीय श्री श्रीनिवास संघ मूर्ति साहब पूर्व जैव विविधता बोर्ड सदस्य सचिव महोदय और उनकी पत्नी सुजाग्रति समाज सेवी संस्था द्वारा आयोजित जैव विविधता संरक्षण एवं संवर्धन कार्यक्रम ग्राम पिपरई मैं गूगल की उपयोगिता,फ़ल संग्रह पर गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें आदरणीय मूर्ति साहब द्वारा बताया गया कि जैव विविधता को समझने के लिए करोना से अच्छा कोई उदाहरण नहीं हो सकता है चमगादड़ के साथ छेड़छाड़ मनुष्य ने की उसका परिणाम आज सारा जगत भोग रहा है इसलिए हमें प्रकृति की खूबसूरती के साथ छेड़छाड़ नहीं करना है उसका संतुलन बनाना है गूगल एक ऐसी औषधि पौधा है जिससे हजार बीमारियों का इलाज होता है हमारे पास पर्याप्त जगह इसे लगाने के लिए तथा इसके लिए यहां की बीहड़ की मिट्टी बहुत मुफीद है यह यहां के लोगों की आजीविका का साधन बन सके यह प्रयास हम और आपको करना है आम के पेड़ लगाता कोई और है और आम खाता कोई और है हमें अपने साथ साथ आने वाली पीढ़ी का भी खयाल रखना है इस अवसर पर जैव विविधता प्रबंधन समिति पिपरई के अध्यक्ष द्वारिका नेता जी द्वारा भी जैव विविधता का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन के समय कल्पवृक्ष निकला था उसी की तुलना गूगल से की ,जैव विविधता प्रबंधन समिति के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह लंगड़ा गांव से पधारे उन्होंने भी जैव विविधता पर प्रकाश डाला और गूगल की सुरछा और संवर्धन के लिए प्रतिबद्धता जताई सुजागृति से जाकिर हुसैन द्वारा अभी तक गूगल पर किए गए कार्यों के विषय में बताया गया उन्होंने बताया कि आज गूगल शतावर से 500 परिवार की आजीविका चल रही है इसलिए इसका संरक्षण और संवर्धन बहुत ही आवश्यक है इस अवसर पर गोष्टी में प्रतिभागीता कर रहे समुदाय ने भी गूगल ओर औषधि पौधों का संरक्षण करने की शपथ ली वन विभाग से कुलश्रेष्ठ स्ट्रेंजर साहब लाखन सिंह डिप्टी रेंजर साहब द्वारा भागीदारी की गई इस कार्यक्रम से समितियों , समुदाय में व संस्था में नव जागृति नई चेतना नया उत्साह पैदा हुआ |

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औषधि पार्क के लिए जन समुदाय की पहल आज कुस अमावस्या के अवसर पर दिनांक 19.8.2020 को ग्राम बमसौली में जनसमुदाय, जनप्रतिनिधियों एवं हितग्राही किसानों ब भक्त जनों के सहयोग से खो वाले हनुमान जी पर एक हेक्टेयर जमीन को औषधि पाक बनाने के लिए पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन सु जागृति समाज सेवी संस्था मुरैना द्वारा किया गया पौधारोपण से पूर्व पूर्व में जो पौधे लगाए गए थे उन पौधों की सफाई की गई घास हटाया गया फिर वृक्षारोपण किया गया वृक्षारोपण में गूगल, सतावर ,अग्नि मांथ, जामुन और बर्गद आदि के विभिन्न औषधीय पौधों का रोपण किया गया इस कार्यक्रम में श्री जितेन्द्र सिंह तोमर ,श्री राकेश पचौरी सबलगढ़ से ग्राम बमसौली के सरपंच मुरारी लाल रावत जैव विविधता प्रबंधन समिति के अध्यक्ष सद्स्य व हितग्राही किसान मुरैना से राकेश श्रीवास्तव सुशील कुमार नागर राजेन्द्र ,सुजागृति समाज सेवी संस्था से श्री जाकिर हुसैन मुन्नालाल आदि लोगों ने भागीदारी की यह वृक्षारोपण यहां एक औषधि पार्क बने, पर्यावरण की सुरक्षा हो गरीबों की आजीविका सुनिश्चित हो इस उद्देश्य को लेकर हरियाली से खुशहाली की ओर समुदाय को ले जाने का प्रयास किया जा रहहै यह कार्यक्रम राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के सहयोग से आयोजित किया गया लगाये गए पौधों का रखरखाव का संकल्प भी ग्रामीण जनों ने लिया साथी सरपंच साहब ने ट्री गार्ड लगाने का आश्वासन भी दिया गया |


आज दिनांक 7.8.2020 को ग्राम पंचायत पहाड़ी के चक्क कॉलोनी सफेरे, मोगियों का पुरा तहशील मोरेनामैं सुजागृति समाज सेवी संस्था मुरैना द्वारा गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण गुग्गल, सताबर जामोंन, नीम का किया गाया पर्यावरण की सुरक्षा एवं समुदाय की आजीविका का साधन भूमि कटाव को रोकने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है इस कार्यक्रम में हितग्राही किसान ग्राम सरपंच पहाड़ी बनवारी लाल गुर्जर राजेन्द्र सिंह सिद्दर यादब सुजागृती समाज सेवी संस्था के लोग भागीदारी करेंगे तकनीकी सहयोग के लिए वन विभाग से कुलश्रेष्ठ डिप्टी रेंजर पलिया फोरेस्ट गार्ड मुरैना रहेंगे पेड़ ही प्रदूषण के जहर को बचाते हैं हारी बीमारी से हम को बचाते हैं। हरियाली ही खुशियां ली है।


150 पौधों का पौधारोपण रविवार को शाम 5 बजे किया गया

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आज विश्व पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर सुजागृति समाजसेवी संस्था मोरेना द्वारा 500 गूगल सतावर के पेड़ों का वृक्षारोपण ग्राम बागचीनी में किया गया जिस कार्यक्रम में डीएफओ वन विभाग एसडीओ साहब रेंजर साहब डिप्टी रेंजर सुजागृति समाज सेवी संस्था के कार्यकर्ता और करीब 20 हितग्राही किसान सोशल डिस्टेंस के साथ यह वृक्षारोपण कार्यक्रम किया गया इसमें गूगल सतावर करील आदि पड़ लगाए गए 10 बीघा के खेत में जहां किसानों ने अपने खेतों की मेड़ों पर इन पौधों का रोपण किया इन पौधों को समतल जमीन पर लगाने के पीछे एक उद्देश्य यह है कि भविष्य में हमें गूगल के बीच आसानी से प्राप्त होंगे गौ द भी आसानी से प्राप्त होगा और वह दिखेगा इससे किसानों की आय वृद्धि होगी पर्यावरण सुधरेगा और लुप्त होती हुई प्रजाति गूगल बचेगी इस कार्यक्रम में ग्राम सरपंच राजेश जी हितग्राही किसान मनोज उपाध्याय अजयवीर सिंह सिकरवार 20 किसानों द्वारा इस कार्यक्रम में भागीदारी की यह कार्यक्रम नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड के सहयोग से किया गया |

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Conducting Pledge Programs for Biodiversity Conservation and Promotion Programs in different Schools of Murena

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Current Annual Program and Budget : 11,32,845 /-
Total Expenditure on the last three projects: i.e. Program based and Administration based.

S.No. Project Name Program Based Administrative Total Grants
1. Jal Abhishek 57485 15000 72485
2. Bio diversity 50000 13000 63000
3. Women Empowerment 44000 5196 49196
4. Gram Swaraj 58384 9000 67384
5. Reclamation of ravines through endogenous technology & ex-Situ conservation of local bio diversity in piprai panchayat of morena District in Madhya Pradesh
6. Gugal plantation 10000 plants 273000 10000 283000
7. Right to information 52000 8000 60000
S.No. Activity Name
01. Jal Abhishek
02. Bio diversity
03. Women Empowerment
04. Gram Swraj
05. Right to information
06. Dorbandi (3000 meters)
07. Gugal plantation 10000 plants
08. Established institutional arrangement for up scaling piloted action and enhanced economic returns for biodiversity based livelihoods.
09. Study of Forest Right Act

Project Title

“Reclamation of ravines through endogenous technology & ex-situ conservation of local biodiversity in Piprai Panchayat of Morena District in Madhya Pradesh”

Project Location
The project location would be one Gram Panchayats of Morena Block of Morena District of Madhya Pradesh, The project covers two villages of the panchayat namely Bhanpur and jaitpur.
(i) Region/State : Madhya Pradesh Nearest City : Morena
(ii) No of Villages : Core : 2 Dissemination : 5

Duration: 12 months
Person responsible for the project Mr. Zakir Hussain

Goal of the Project
Ravine reclamation in Chambal eco-region

Purpose/Objectives of the Project
Reclamation of ravines through endogenous technology & ex-situ conservation of local biodiversity in Bhanpur Panchayat of Morena District in Madhya Pradesh.

Project Outputs

Output 1 Development of rural cultural communities and them traditional song festivals and developing them cultural.
Output 2 20 ha of community owned ravines reclaimed through gugal plantation
Output 3 Established institutional arrangement for upscalling piloted action and enhanced economic returns for biodiversity based livelihoods.

Major Activities

Output 1 Cultural community developing in three villages.
Output 1 Two days trained program of them community traditional song.
Output 1 Held the stage program of them traditional base
Output 1 Studies them festivals fairs, Bazars, marriage and other functions.
Output 1 Studies of them dress up , ornaments and loading and boarding .
Output 1 Participate of them functions and development
Output 2 20 ha of community owned ravines reclaimed through gugal plantation (Submit estimate)
Output 2 Development to treatment plant
Output 2 Formation of women’s nursery raisers group
Output 2 Pre-planting works
Output 2 Soil and water conservation works in 20 ha
Output 2 Plantation
Output 2 Post-planting works
Output 3 Established institutional arrangement for up scaling piloted action and enhanced economic returns for biodiversity based livelihoods.
Output 3 Training of BMCs/JFMC on Plantation management.
Output 3 Development of institutional norms for plantation protection and implementation
Output 3 Linkage with MPSBB and MPFD for ongoing management support and upsaling.
Output 3 Formation of user group for Gugal and Statawar in plantation area
Output 3 Training of user group for Sustainable harvest and value addition
Output 3 Market linkages for enhanced economic returns.